घने और देवदार के लंबे वृक्षों से आच्छादित पहाड़ों के बीचोबीच एक आदिवासी गांव पहाड़गांव आम टोला. यह गांव झारखंड के गुमला जिले के कामडारा थाना क्षेत्र में आता है. गांव में एक ऐतिहासिक शिव मंदिर है इसीलिए इस गांव का नाम दूरदूर तक प्रसिद्ध है.
सावन का महीना हो या फिर महाशिवरात्रि पर्व, भक्तों की यहां भीड़ उमड़ती है. हालांकि पहाड़गांव में नक्सली संगठन पीएलएफआई काफी सक्रिय है. कई बार पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ भी हो चुकी है. इसलिए भी पहाड़गांव पूरे जिले में चर्चित है.
इसी गांव में 60 वर्षीय किसान निकोदिन तोपनो अपनी पत्नी जोसविना तोपनो ( 55 साल), बेटे भिनसेट तोपनो ( 35 साल), बहू शीलवंती तोपनो ( 30 साल) और पोते अलबिन तोपनो ( 5 साल) के साथ हंसीखुशी रहते थे.
बापबेटे मिल कर इतनी मेहनत कर लेते थे कि खेतों में साल भर के खाने से ज्यादा अनाज पैदा हो जाता था. साल भर खाने के लिए अनाज घर में रख कर बाकी का बाजार में बेच कर पैसे कमा लेते थे. इसी से उन का जीवनयापन होता था.
बात 23 फरवरी की है. रात में निकोदिन तोपनो पत्नी, बेटा, बहू और पोते एक साथ बैठ कर खाना खाने के बाद सोने चले गए. रात 9 बजतेबजते निकोदिन और उन का पूरा परिवार खर्राटे भरने लगा था. उन का मकान कच्ची मिट्टी और घासफूस का बना था.
अगली सुबह निकोदिन तोपनो का भतीजा अमृत तोपनो अपने घर के बाहर नीम का दातून कर रहा था. उसी समय गांव का एक आदमी दौड़ताहांफता उस के पास पहुंचा और बोला, "गजब हो गया अमृत, गजब हो गया."
"अरे, क्या गजब हो गया भाई? थोड़ा सांस तो ले लो, फिर कहो जो कहना चाहते हो." दातून मुंह से निकालते हुए अमृत बोला.
"अरे भाई, सुनेगा तो तेरे भी होश उड़ जाएंगे. घर के बाहर तेरे बड़े पिता..."
"क्या हुआ बड़े पिताजी को..?"
"किसी ने पूरे परिवार को मार डाला. उन को और तेरी बड़ी मां को मार कर घर के बाहर फेंक दिया है. दोनों की लाशें बाहर पड़ी हैं."
अमृत ने इतना ही सुना था कि वह जिस अवस्था में था, वैसे ही दातून एक ओर फेंकता हुआ दौड़ ताचिल्लाता ताऊ निकोदिन के घर पहुंचा. सचमुच वहां बड़े पिता और बड़ी मां की थोड़ी दूरी पर खून डूबी लाशें पड़ी थीं. बड़ी बेरहमी से किसी ने उन के गले और सिर पर धारदार हथियार से वार कर मार डाला था.
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