उत्तर प्रदेश के जालौन जिले का एक ऐतिहासिक कस्बा है कालपी. इसी कालपी कस्बे के स्टेशन रोड पर नरेश कुमार तिवारी सपरिवार रहते थे. उ के परिवार में पत्नी उमा के अलावा 2 | बेटियां राधा व सुधा थीं. नरेश कुमार प्राइवेट नौकरी करते थे. उन की आर्थिक 4 स्थिति ठीक नहीं थी. बड़ी मुश्किल से वह परिवार की दोजून की रोटी जुटा पाते थे.
गरीबी में पलीबढ़ी राधा जब जवान हुई तो उस के रंगरूप में निखार आ गया. हर मांबाप बेटी के लिए अच्छा घर तथा सीधाशरीफ वर ढूंढते हैं, वे यह नहीं देखते कि बेटी ने अपने जीवनसाथी को ले कर क्या सपने संजोए हुए हैं. राधा के मातापिता ने भी बेटी का मन नहीं टटोला. उन्होंने अश्वनी दुबे से उस का विवाह रचा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री भर कर दी.
अश्वनी के पिता ओमप्रकाश दुबे जालौन जिले के माधौगढ़ थाना अंतर्गत सिरसा दोगड़ी गांव के निवासी थे. अश्वनी दुबे उन का इकलौता बेटा था. ओमप्रकाश किसान थे. किसानी में बेटा अश्वनी भी उन का हाथ बंटाता था. खेती के अलावा वह दुधारू जानवर भी पाले हुए थे. दूध के कारोबार से उन की अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.
अश्वनी दुबे जैसा मेहनती और सीधासादा दामाद पा कर नरेश कुमार निश्चित हो गया था कि बेटी का जीवन संवर गया. राधा के मन के दर्पण में क्याक्या दरका, यह कोई नहीं जानता था.
राधा एक महत्त्वाकांक्षी युवती थी. उस ने मन में सपना संजोया हुआ था कि शादी के बाद उस के पास बड़ा सा घर, खूब सारा पैसा और स्मार्ट पति होगा. लेकिन मिला क्या? मामूली सा घर और रोटी के लिए जूझता हुआ मामूली सा पति.
अश्वनी के पास थोड़ी सी जमीन थी, जिस के सहारे वह गृहस्थी की नैया को खे रहा था. ससुर और पति के खेत पर चले जाने के बाद राधा अपने टूटे हुए सपनों को जोड़ने की उधेड़बुन में लगी यही सोचती कि अब कभी उस की चाहतें पूरी नहीं होंगी.
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