समय देकर थोड़ा-सा साथ भी
Rupayan|April 21, 2023
रक्तदान, नेत्रदान या अंगदान का महत्व हम सब समझ चुके हैं। अब समयदान की जरूरत आ गई है। अपने घर में या आस-पास के बुजुर्गों के लिए समय निकालें। उनसे बातचीत करें। उनका साथ दें। इस समयदान में घर की गृहणियों की भी बड़ी भूमिका हो सकती है।
स्वेता माहातो
समय देकर थोड़ा-सा साथ भी
  • अलग-अलग देशों में और अपने यहां भी सरकार के पास बुजुर्गों के लिए ढेर सारी योजनाएं हैं। लेकिन सवाल यह है कि बुजुर्गों के लिए क्या इतना ही काफी है?

वैसे तो भाग-दौड़ भरी दुनिया में किसी के लिए समय निकालना बहुत मुश्किल हो गया है। पढ़ाई-लिखाई और कॅरिअर की चिंता ने आज की पीढ़ी की व्यस्तता को इतना बढ़ा दिया है कि अपने परिवार के साथ बैठने का उसके पास समय नहीं बचा है। रोजी-रोटी की चिंता ने युवाओं को घर से ऐसा निकाला कि कई बार वे सिर्फ बाहर के ही होकर रह जाते हैं। वास्तव में, एकल परिवारों का चलन भी इसीलिए बढ़ा और इसका सबसे अधिक असर अगर किसी वर्ग पर पड़ा तो वे थे- परिवार के बरगद यानी घर के बुजुर्ग। संयुक्त परिवारों के ढलान ने बुजुर्गों को अकेला कर दिया। पूरा जीवन अपने घर-परिवार को देने वाले जब बुजुर्ग हुए तो उन्हें किसी का साथ नहीं मिला। उन्होंने भले अपने परिवार को पूरा वक्त दिया हो, लेकिन उन्हें कुछ समय देने को कोई तैयार नहीं दिखता। कहीं मजबूरी तो कहीं मोबाइल की धुन, कहीं जिंदगी की रेस तो कहीं आत्मकेंद्रित स्वभाव की वजह से बुजुर्गों को देखने वाला घर में कोई नहीं होता है। अलग-अलग देशों में और अपने यहां भी सरकार के पास बुजुर्गों के लिए ढेर सारी योजनाएं हैं। न्यूजीलैंड में रिटायरमेंट के बाद सरकारी मदद के तहत बुजुर्गों के लिए 'सुपर गोल्ड कार्ड' की व्यवस्था की गई है, ताकि वे बिना किसी तकलीफ के परिवहन का इस्तेमाल कर सकें और एक जगह से दूसरी जगह घूम सकें। वहीं, भारत समेत कई अन्य देशों में बुजुर्गों को सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन की सुविधा दी गई है। लेकिन क्या समय से पेंशन मिल जाना ही बुजुर्गों के लिए काफी है? घर में बैठे बुजुर्गों के लिए समय से पेंशन मिलने के अलावा परिवारवालों के समय की भी जरूरत होती है।

जहां चाह वहां राह 

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