सदियों से हमारे समाज में एक लिंग भेद रहा है। जब एक पुरुष अपने घर में बिजनेस करने की इच्छा जाहिर करता है तो उससे सवाल नहीं किए जाते, बस बोला जाता है कि 'तुम कर लोगे न?' इससे उसका आत्मविश्वास खुद-ब-खुद बढ़ जाता है। दूसरी ओर, लड़कियों को साफ कह दिया जाता है कि 'तुम नहीं कर पाओगी।' उनके मन में छोटी-सी उम्र में ही इतनी सारी शंकाएं भर दी जाती हैं कि उन्हें खुद की काबिलियत पर शक होने लगता है। हां, यह सच है कि बिजनेस में अनेक प्रकार के दांव-पेंच होते हैं, कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और अगर कारोबारी पृष्ठभूमि न हो तो चुनौतियां कई गुना अधिक बड़ी लगती हैं। जयपुर की दिशि सोमानी के पिता भी नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी बिजनेस करे, क्योंकि इसमें बहुत जोखिम होते हैं, लेकिन दिशि खुद को एक मौका देना चाहती थीं। उनके दिमाग में ज्वेलरी डिजाइनिंग का आइडिया आया और महज पांच हजार रुपये की पूंजी से उन्होंने ऑनलाइन व्यवसाय शुरू कर दिया। उद्यमिता में आने के अपने निर्णय के बारे में दिशि बताती हैं, "परिवार में कोई भी ज्वेलरी बिजनेस में नहीं था। न ही किसी को इस उद्योग की जानकारी थी। मैंने अकेले अपने दम पर शून्य से शुरुआत की। मां ने एस्थेटिक डिजाइन में मदद की तो पिता ने गाइड की भूमिका निभाई। इसके अलावा मेरे कुछ दोस्त थे, जिन्होंने बिना कोई फीस लिए एक प्रारंभिक वेबसाइट तैयार करने में मदद की। इसके बाद मैंने कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराया और लोकप्रिय ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस के साथ टाइअप किया। इसके बाद ऑर्डर आने लगे। इस बीच छोटी-छोटी चुनौतियां रहीं, जैसे कि स्टाफ और कारीगरों के साथ काम करते हुए उत्पाद की गुणवत्ता को निरंतर बनाए रखना, लेकिन यह शायद सभी स्टार्टअप उद्यमियों के साथ होता है। इस काम में हमें संयम रखना होता है और हमारी कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता एक दिन सफलता में जरूर बदल जाती है।"
■ निवेशक भी आ रहे आगे
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शाप भी देते हैं पितर
धर्मशास्त्रों ने श्राद्ध न करने से जिस भीषण कष्ट का वर्णन किया है, वह अत्यंत मार्मिक है। इसीलिए शास्त्रों में पितृपक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने को कहा गया है।
हर तिथि का अलग श्राद्धफल
पितृपक्ष में पितरों के निमित्त तिथियों का ध्यान रखना भी जरूरी है। शास्त्रों के अनुसार, तिथि अनुसार किए गए श्राद्ध का फल भी अलग-अलग होता है।
पितृदोष में पीपल की परिक्रमा
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में पितृदोष दूर करने के उपाय जरूर करने चाहिए, ताकि पितर प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।
पिंडदान के अलग-अलग विधान
व्यक्ति का अंत समय कैसा रहा, इस आधार पर उसकी श्राद्ध विधि भी विशेष हो जाती है। अलग-अलग मृत्यु स्थितियों के लिए अलग-अलग तरह से पिंडदान का विधान है।
पितृपक्ष में दान
भारतीय संस्कृति में दान की महत्ता अपरंपार है। लेकिन पितृ पक्ष के दौरान दान का विशेष महत्व है। कुछ वस्तुओं के दान को तो महादान माना गया है।
जैसी श्रद्धा, वैसा भोज
पितृपक्ष में ब्राह्मण भोज जरूरी है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अत्यंत गरीब है तो वह जल में काले तिल डालकर ही पूर्वजों का तर्पण कर सकता है।
स्त्रियों को भी है अधिकार
यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है तो ऐसी स्थिति में स्त्री भी संकल्प लेकर श्राद्ध कर सकती है। शास्त्रों ने इसके लिए कुछ नियम बताए हैं।
निस्संतान के श्राद्ध की विधि
शास्त्रों के अनुसार, पुत्र ही पिता का श्राद्ध कर्म करता है। ऐसे में जो लोग निस्संतान थे, उन्हें तृप्ति कैसे मिलेगी ? शास्त्रों ने उनके लिए भी कुछ विधान बताए हैं।
पंडित न हों तो कैसे करें पिंडदान
पिंडदान के लिए यदि कोई पंडित उपलब्ध नहीं हो पा रहा है तो ऐसे में शास्त्रों ने इसका भी मार्ग बताया है, जिससे आप श्राद्ध कर्म संपन्न कर सकते हैं।
किस दिशा से पितरों का आगमन
पितरों के तर्पण में कुछ वास्तु नियम भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनके पालन से तर्पण का अधिकतम लाभ होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।