हाल ही में इसरो ने चंद्रयान-3 मिशन को अंतरिक्ष केंद्र से साइंटिस्ट ऋतु करिधाल के नेतृत्व में सफलतापूर्वक लॉन्च किया। रॉकेट वुमन ऋतु करिधाल मंगलयान मिशन के समय से ही चर्चा में रही हैं। लेकिन यह जानना जरूरी है कि इस मिशन में कैमरे के पीछे 54 महिला साइंटिस्ट व इंजीनियर्स थीं।
अपने एक इंटरव्यू में पद्मश्री सुधा मूर्ति ने बताया था कि 1960 में हुगली, प. बंगाल के इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेनेवाली वे अकेली लड़की थीं। कभी उन पर कागज फेंके जाते, तो कभी इंक। उन्हें लड़कों से बात करने, कैंटीन में जाने की मनाही थी और निर्देश था कि वह साड़ी में कॉलेज आएंगी। एक साल बाद जब उन्होंने टॉप किया, तो लड़के खुद उनसे बात करने लगे। इंजीनियर बनने के बाद जब उन्होंने टाटा की कंपनी में एक पोजिशन के लिए अप्लाई किया, तो वहां यह शर्त लिखी मिली कि महिलाएं इसमें अप्लाई नहीं कर सकतीं। गुस्से में उन्होंने सीधे टाटा को पत्र लिखा कि इतनी बड़ी कंपनी महिला के साथ कैसे भेदभाव कर सकती है। उन्हें ना सिर्फ नौकरी ऑफर की गयी, बल्कि आने-जाने का भत्ता भी मिला। तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है। पिछले साल सीएसआईआर की पहली महिला निदेशक के रूप में डॉ. एन. कलैसेल्वी ने कार्यभार संभालते हुए कहा कि संगठन के भीतर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए वह प्रयासरत रहेंगी। पिछले दो-ढाई दशकों में अनुसंधान एवं विकास में महिलाओं की संख्या चार गुना तक बढ़ी है, लेकिन यह रफ्तार धीमी है। विज्ञान में महिलाओं को नोबल भी कम प्राप्त हुए। बात करें भौतिकी की, तो अब तक केवल 3 महिलाओं को इसमें नोबल मिला। 1903 में मैरी क्यूरी को, फिर मारिया गोपर्ट और 2018 में डोना स्ट्रिकलैंड को भौतिकी में नोबल मिला। मैरी क्यूरी को रसायन में भी नोबल मिला। उनकी बेटी को भी नोबल प्राइज मिला।
टीचर अच्छा हो तो रुचि बढ़ जाती है
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