भारत के मसाले जितने अनोखे हैं, इनकी कहानी भी उतनी ही अदभुत है। भारत के मसालों का व्यापार अपने समय में दुनिया भा का सबसे बड़ा व्यापार था, जिसने दुनियाभर में मसाले के स्वाद को स्थापित किया। इन्हीं मसालों के कारण दुनिया के नए महाद्वीपों की खोज हुई और आधुनिक दुनिया की नींव भी रखी गयी।
आज यह जान कर आश्चर्य होता है कि उस समय मसाले कड़ी सुरक्षा में रखे जाते थे, क्योंकि इन पर नियंत्रण रखनेवालों के लिए मसाले अपार धन कमाने का स्रोत थे। 4,000 साल पहले मध्य-पूर्व के अरबी व्यापारी छुप कर भारत आते थे। वे इस अमूल्य धन को अपने लिए सुरक्षित और गोपनीय रखना चाहते थे, इसीलिए मसाला लाने में आनेवाली जानलेवा कठिनाइयों की झूठी कहानी दुनिया को बताते थे। वे कहते थे कि उन्हें कठिन चट्टानों को पार करके खतरनाक बड़े पंखवाले पक्षियों से लड़ने के बाद ही ये नए मसाले उपलब्ध होते हैं। फिर ये व्यापारी मनचाहे दामों में दुनिया को मसाले बेचा करते थे। शुरुआत में भारत को चीन और यूरोप से जोड़ने वाली सड़क सिल्क रूट से मसाले ऊंट के कारवां द्वारा भारत से विश्व के विभिन्न देशों में पहुंचते थे।
410 ईसवी में जब जर्मनी (बीसीगोथस) ने रोम पर विजय प्राप्त की, तब उन्होंने 3,000 पाउंड की काली मिर्च की फिरौती मांगी। 16वीं सदी में लंदन के गोदी कर्मियों को बोनस का भुगतान लौंग के रूप में किया जाता था।
15वीं शताब्दी में जब पानी के जहाज द्वारा लंबी दूरियां तय करना संभव हो गया, तब मसाले की खोज में निकले कोलंबस का जहाज भारत की ओर निकला, परंतु वह अमेरिका पहुंच गया। इस प्रकार उस महाद्वीप की खोज हो गयी। 1497 में वास्को-डि-गामा अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप का चक्कर लगा कर हिंद महासागर से दक्षिण भारत के कालीकट यानी केरल पहुंच गया और पुर्तगाली साम्राज्य की शुरुआत की। इनके पीछे-पीछे स्पेनिश, अंग्रेज और डच भी भारत आ गए। 18वीं शताब्दी में अमेरिका ने अपनी मसाला कंपनियां भारत में खोलीं। आज भी 75% मसालों की भारत में ही पैदावार होती है। सबसे अधिक मसाले की पैदावार केरल में होती है। यहां तेजपत्ता, काली मिर्च, छोटी इलायची, लौंग, दालचीनी, जायफल, जावित्री, वनिला फली, अदरक और हल्दी अधिक मात्रा में उगाए जाते हैं।
कश्मीर का करिश्मा
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