राजस्थान की एजुकेशन नगरी कोटा बहुत से सपनों की मंजिल जरूर है, लेकिन कुछ युवाओं के लिए उन सपनों का बोझ ज्यादा हो चला है। इन सपनों के पूरे नहीं होने की टीस कुछ जिंदगियों को लील रही है। लो भई फिर से खबर आ गयी-कोटा में एक और बच्चे ने टेस्ट सीरीज में अच्छा परफॉर्म नहीं किया और उसने अपने रूम में फंदा लगा कर अपने जीवन को समाप्त कर लिया। कोटा से ये खबरें अब इतनी आ रही हैं कि कहीं ना कहीं हमें इस खबर को पढ़ने की आदत सी हो रही है। कड़वी लेकिन सच बात है कि इस खबर को पढ़ने के बाद हमारी टीका-टिप्पणी इस बात को ले कर शुरू हो जाती है कि आत्महत्या कोई हल नहीं होता। अरे नहीं प्रेशर ले पा रहा था, तो अपने घर चला जाता अपने मां-बाप से कह देता। मां-बाप के लिए नहीं सोचा इसने। वहीं हममें से कुछ लोग मां-बाप को दोष देने लगते हैं, बिना यह जाने कि उनकी स्थिति क्या है? क्या हालात रहे होंगे कि उन्होंने अपने बच्चे को कोटा भेजा? मां-बाप के परिपेक्ष्य से देखने और समझने की कोशिश करें, तो शायद हम उस तकलीफ को समझने की कल्पना भी नहीं कर सकते कि जब उनके पास कोटा से फोन जाता होगा कि आपके बच्चे ने आत्महत्या कर ली है, आप आ कर बॉडी को ले जाइए।
सच में बहुत आसान है किसी के आत्महत्या करने पर कमेंट करना। वह बच्चा तो अपने पक्ष की सफाई देने के लिए अब इस दुनिया में भी मौजूद नहीं है। नहीं झेल पा रहा था वह प्रेशर, उसके दिमाग में क्या रहा होगा हम नहीं जानते? हमारी तरह वह भी जानता ही होगा कि आत्महत्या कोई समाधान नहीं होता, लेकिन फिर भी आए दिन यह हो रहा है। लेकिन हमारे पास समय कहां है? हम इसके कारण को बिना जाने अपना यह फरमान जारी करते हैं कि आत्महत्या नहीं करनी चाहिए।
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