एक बार की बात है या वंस अपॉन ए टाइम...बेडटाइम स्टोरीज की शुरुआत अकसर इन्हीं वाक्यों से शुरू होती | थी। कहानियों की कुछ पंक्तियां तो ताउम्र के लिए जेहन में अंकित हो गयी हैं। जैसे...और परी ने अपनी जादू ए खरगोश की छड़ी घुमायी, घोड़े पर उड़ता सजीला राजकुमार आया और राजकुमारी को कैद से छुड़ा ले गया...दौड़ के बीच में सुस्ताने बैठ गया, मगर कछुआ मंथर-मंथर चलता गया और खरगोश से जीत गया...वफादार नेवले को मालिक ने क्रोधवश मार दिया, जबकि उसने सांप से बच्चे की जान बचायी थी...बांसुरी वाले की धुन पर शहर के सारे चूहे पीछे-पीछे चलने लगे...।
पंचतंत्र की कहानियां हों या अकबर-बीरबल या शेखचिल्ली के किस्से, चतुर सियार, चालाक लोमड़ी, होशियार कौवे की कहानी हो या फिर सिंड्रेला, एलिस इन वंडरलैंड, द आंट एंड द ग्रासहूपर, द ग्रीडी लॉयन और द स्पीकिंग केव...ऐसी हजारों-हजार कहानियां ना सिर्फ बच्चों की कल्पना-शक्ति को बढ़ाती हैं, बल्कि इनके जरिए वे जीवन के कठिनतम पाठ भी सहज ही सीख लेते हैं।
पुराने समय में जब टीवी-मोबाइल-इंटरनेट का दखल घरों में नहीं था, कहानियां पढ़ने-सुनाने की एक रवायत हुआ करती थी। गरमी की छुट्टियां तब नाना-नानी, दादा-दादी के घर गुजरा करती थीं। दिन भर की धमाचौकड़ी, पकड़म-पकड़ाई और छुपम-छिपाई के बीच सब बच्चे बेसब्री से रात का इंतजार करते। बड़ी सी छतों पर पानी का छिड़काव कर चटाइयां बिछायी जातीं और स्वच्छ-साफ व पॉल्यूशन फ्री आसमान में छिटके तारों तले, जुगनुओं की जगमग संग बड़े-बूढ़ों से कहानियां सुनते बच्चे कब वास्तविक दुनिया से कल्पना लोक में पहुंच जाते, पता भी नहीं लगता। इन कहानियों का असर कुछ ऐसा होता कि बच्चे नींद में भी कहानियों के हिस्से गढ़ रहे होते थे।
व्यक्तित्व विकास में भूमिका
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