खेत की तैयारी
इस के लिए वर्षा कम होने के साथ समय मिलते ही खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और 2-3 जुताई देशी हल, कल्टीवेटर या हैरो से कर के पाटा दे कर मिट्टी भुरभुरी बना लें.
प्रमुख प्रजातियां
तोरिया की प्रमुख प्रजातियां टी. 9, भवानी, पीटी 303, पीटी 30 और तपेश्वरी हैं, जो 75 से 90 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं. उपज क्षमता 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ है.
बीज की मात्रा और बीजोपचार
तोरिया के बीज डेढ़ किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए. बीजजनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए. इस के लिए ढाई ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित कर के ही बोएं.
बोआई का उचित समय
गेहूं की अच्छी फसल लेने के लिए तर की बोआई सितंबर के पहले पखवारे में समय मिलते ही की जानी चाहिए. भवानी प्रजाति की बोआई सितंबर के दूसरे पखवारे में ही करें.
खाद एवं उर्वरक
मृदा परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए. यदि मिट्टी का परीक्षण न हो सके, तो 16 क्विटल गोबर की सड़ी खाद का प्रयोग प्रति एकड़ में करें. 44 किलोग्राम यूरिया, 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 30 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें.
बोआई के 25 से 30 दिन के बीच पहली सिंचाई के बाद टौप ड्रैसिंग के रूप में 44 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ में देना चाहिए.
बोआई की विधि
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नई तकनीक से किसानों की आमदनी बढ़ा रही हैं डा. पूजा गौड़
डा. पूजा गौड़ शिक्षा से स्वावलंबन और स्वावलंबन से माली समृद्धि के लिए जौनसार इलाके के किसानों और युवाओं को खेतीबारी के प्रति जागरूक कर रही हैं. हाल ही में उन्हें उन के किए जा रहे प्रयासों के लिए लखनऊ में दिल्ली प्रैस द्वारा आयोजित 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड 2024' से सम्मानित किया गया.
पशुओं में गर्भाधान
गोवंशीय पशुओं का बारबार गरमी में आना और स्वस्थ व प्रजनन योग्य नर पशु से गर्भाधान या फिर कृत्रिम गर्भाधान सही समय पर कराने पर भी मादा पशु द्वारा गर्भधारण न करने की अवस्था को 'रिपीट ब्रीडिंग' कहते हैं.
पशुओं के लिए बरसीम एक पौष्टिक दलहनी चारा
बरसीम हरे चारे की एक आदर्श फसल है. यह खेत को अधिक उपजाऊ बनाती है. इसे भूसे के साथ मिला कर खिलाने से पशु के निर्वाहक एवं उत्पादन दोनों प्रकार के आहारों में प्रयोग किया जा सकता है.
औषधीय व खुशबूदार पौधों की जैविक खेती
शुरू से ही इनसान दूसरे जीवों की तरह पौधों का इस्तेमाल खाने व औषधि के रूप में करता चला आ रहा है. आज भी ज्यादातर औषधियां जंगलों से उन के प्राकृतिक उत्पादन क्षेत्र से ही लाई जा रही हैं. इस की एक मुख्य वजह तो उनका आसानी से मिलना है. वहीं दूसरी वजह यह है कि जंगल के प्राकृतिक वातावरण में उगने की वजह से इन पौधों की क्वालिटी अच्छी और गुणवत्ता वाली होती है.
दुधारू पशुओं की प्रमुख बीमारियां और उन का उपचार
पशुपालकों को पशुओं की प्रमुख बीमारियों के बारे में जानना बेहद जरूरी है, ताकि उचित समय पर सही कदम उठा कर अपना माली नुकसान होने से बचा जा सके. कुछ बीमारियां तो एक पशु से दूसरे पशु को लग जाती हैं, इसलिए सावधान रहने की जरूरत है.
एक ऐसा गांव जहां हर घर में हैं दुधारू पशु
मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित विश्वविद्यालय की घाटी पर बसा गांव रैयतवारी भैंसपालन और दूध उत्पादन के लिए जाना जाता है. दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कलक्टर संदीप जीआर के मार्गदर्शन में संचालित मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
रबी की सब्जियों में जैविक कीट प्रबंधन
रबी की सब्जियों में मुख्य रूप से वर्गीय में फूलगोभी, पत्तागोभी, सोलेनेसीवर्गीय में गांठगोभी, टमाटर, बैगन, मिर्च, आलू, पत्तावर्गीय में धनिया, मेथी, सोया, पालक, जड़वर्गीय में मूली, गाजर, शलजम, चुकंदर एवं मसाला में लहसुन, प्याज आदि की खेती की जाती है.
कृषि विविधीकरण : आमदनी का मजबूत जरीया
किसानों को खेती में विविधीकरण अपनाना चाहिए, जिससे कि वे टिकाऊ खेती, औद्यानिकीकरण, पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय के साथ ही मधुमक्खीपालन, मुरगीपालन सहित अन्य लाभदायी उद्यम को करते हुए अपने परिवार की आय को बढ़ाने के साथसाथ स्वरोजगार भी कर सकें.
जनवरी में खेती के काम
जनवरी में गेहूं के खेतों पर खास ध्यान देने की जरूरत होती है. इस दौरान तकरीबन 3 हफ्ते के अंतराल पर गेहूं के खेतों की सिंचाई करते रहें. गेहूं के खेतों में अगर खरपतवार या दूसरे फालतू पौधे पनपते नजर आएं, तो उन्हें फौरन उखाड़ दें.
जल संसाधनों के अधिक दोहन को रोकना जरूरी
बायोसैंसर जैसी आधुनिक तकनीक का जल संसाधनों में बेहतर उपयोग किया जा सकता है. मक्का की फसल धान वाले खेतों में पानी बचाने के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती है.