सरकारी स्वामित्व वाली कृषि बीमा कंपनी का मुख्य कार्यालय नई दिल्ली में है. यह भारत के लगभग 500 जिलों में उपज आधारित और मौसम आधारित फसल बीमा प्रदान करता है. इस में लगभग 20 मिलियन किसान शामिल हैं, जो इस की विश्वसनीयता के प्रतीक हैं.
यह बीमा कंपनी प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों के चलते फसल खराब होने की दशा में किसानों को बीमा कवरेज और वित्तीय सहायता प्रदान करती है खासकर प्राकृतिक आपदा जैसे फसल में आग लगना, बिजली, तूफान, ओलावृष्टि, चक्रवात, आंधीतूफान, सूखा, तैयार फसल में कीट व बीमारी के प्रकोप से फसल खराब हो जाना आदि के कारण उपज में हुए नुकसान की किसानों को भरपाई करती है.
डब्ल्यूबीसीआईएस फौर कार्डम
स्पाइसेस बोर्ड, भारत वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी औफ इंडिया लिमिटेड के माध्यम से केरल में इलायची के लिए मौसम आधारित फसल बीमा योजना लागू कर रही है.
इस योजना का उद्देश्य इलायची उत्पादकों को प्रतिकूल मौसम की घटनाओं के मामले में बीमा सुरक्षा प्रदान करना है, जो अधिसूचित संदर्भ मौसम स्टेशनों (आरडब्ल्यूएस) में दर्ज मौसम के आंकड़ों के अनुसार इलायची की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली मानी जाती हैं.
यह योजना विशेष रूप से अधिसूचित स्थानीय आपदाओं से किसानों को योजना के प्रावधानों के अनुसार सर्वे के माध्यम से व्यक्तिगत आधार पर क्षतिपूर्ति प्रदान करती है.
लघु फसल कवच
यह उत्पाद खराब मौसम की स्थिति से संबंधित फसल की उपज में होने वाले नुकसान को कवर करता है. उत्पाद के तहत प्रदान किए जाने वाले कवर मौसम के मापदंडों पर आधारित होते हैं, जिस में से एक या कवर के संयोजन को चुना जा सकता है.
मौसम पैरामीटर्स वर्षा पर आधारित, तापमान, आर्द्रता, धूप की कमी, ठंड की आवश्यकता, तेज हवा की गति, कीट व रोग, अनुकूल जलवायु इन पर कवर होते हैं. उत्पाद एकल या इन मापदंडों के संयोजन के आधार पर कवर प्रदान करेगा.
कोंसेक्वेंटल क्रौप लौस
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नई तकनीक से किसानों की आमदनी बढ़ा रही हैं डा. पूजा गौड़
डा. पूजा गौड़ शिक्षा से स्वावलंबन और स्वावलंबन से माली समृद्धि के लिए जौनसार इलाके के किसानों और युवाओं को खेतीबारी के प्रति जागरूक कर रही हैं. हाल ही में उन्हें उन के किए जा रहे प्रयासों के लिए लखनऊ में दिल्ली प्रैस द्वारा आयोजित 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड 2024' से सम्मानित किया गया.
पशुओं में गर्भाधान
गोवंशीय पशुओं का बारबार गरमी में आना और स्वस्थ व प्रजनन योग्य नर पशु से गर्भाधान या फिर कृत्रिम गर्भाधान सही समय पर कराने पर भी मादा पशु द्वारा गर्भधारण न करने की अवस्था को 'रिपीट ब्रीडिंग' कहते हैं.
पशुओं के लिए बरसीम एक पौष्टिक दलहनी चारा
बरसीम हरे चारे की एक आदर्श फसल है. यह खेत को अधिक उपजाऊ बनाती है. इसे भूसे के साथ मिला कर खिलाने से पशु के निर्वाहक एवं उत्पादन दोनों प्रकार के आहारों में प्रयोग किया जा सकता है.
औषधीय व खुशबूदार पौधों की जैविक खेती
शुरू से ही इनसान दूसरे जीवों की तरह पौधों का इस्तेमाल खाने व औषधि के रूप में करता चला आ रहा है. आज भी ज्यादातर औषधियां जंगलों से उन के प्राकृतिक उत्पादन क्षेत्र से ही लाई जा रही हैं. इस की एक मुख्य वजह तो उनका आसानी से मिलना है. वहीं दूसरी वजह यह है कि जंगल के प्राकृतिक वातावरण में उगने की वजह से इन पौधों की क्वालिटी अच्छी और गुणवत्ता वाली होती है.
दुधारू पशुओं की प्रमुख बीमारियां और उन का उपचार
पशुपालकों को पशुओं की प्रमुख बीमारियों के बारे में जानना बेहद जरूरी है, ताकि उचित समय पर सही कदम उठा कर अपना माली नुकसान होने से बचा जा सके. कुछ बीमारियां तो एक पशु से दूसरे पशु को लग जाती हैं, इसलिए सावधान रहने की जरूरत है.
एक ऐसा गांव जहां हर घर में हैं दुधारू पशु
मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित विश्वविद्यालय की घाटी पर बसा गांव रैयतवारी भैंसपालन और दूध उत्पादन के लिए जाना जाता है. दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कलक्टर संदीप जीआर के मार्गदर्शन में संचालित मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
रबी की सब्जियों में जैविक कीट प्रबंधन
रबी की सब्जियों में मुख्य रूप से वर्गीय में फूलगोभी, पत्तागोभी, सोलेनेसीवर्गीय में गांठगोभी, टमाटर, बैगन, मिर्च, आलू, पत्तावर्गीय में धनिया, मेथी, सोया, पालक, जड़वर्गीय में मूली, गाजर, शलजम, चुकंदर एवं मसाला में लहसुन, प्याज आदि की खेती की जाती है.
कृषि विविधीकरण : आमदनी का मजबूत जरीया
किसानों को खेती में विविधीकरण अपनाना चाहिए, जिससे कि वे टिकाऊ खेती, औद्यानिकीकरण, पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय के साथ ही मधुमक्खीपालन, मुरगीपालन सहित अन्य लाभदायी उद्यम को करते हुए अपने परिवार की आय को बढ़ाने के साथसाथ स्वरोजगार भी कर सकें.
जनवरी में खेती के काम
जनवरी में गेहूं के खेतों पर खास ध्यान देने की जरूरत होती है. इस दौरान तकरीबन 3 हफ्ते के अंतराल पर गेहूं के खेतों की सिंचाई करते रहें. गेहूं के खेतों में अगर खरपतवार या दूसरे फालतू पौधे पनपते नजर आएं, तो उन्हें फौरन उखाड़ दें.
जल संसाधनों के अधिक दोहन को रोकना जरूरी
बायोसैंसर जैसी आधुनिक तकनीक का जल संसाधनों में बेहतर उपयोग किया जा सकता है. मक्का की फसल धान वाले खेतों में पानी बचाने के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती है.