"भविष्य उन राष्ट्रों का होगा, जिन के पास अनाज होगा, न कि बंदूकें," यह बात कई साल पहले प्रो. एमएस स्वामीनाथन ने कही थी, जब न कोरोना का संकट आया था और न ही रूसयूक्रेन का युद्ध आरंभ हुआ था, लेकिन उन की कही बात आज कहीं अधिक सच लग रही है.
प्रो. एमएस स्वामीनाथन 2 साल और जिंदा रहते तो उन का सफर एक सदी का हो जाता. फिर भी अपनी 98 साल की उम्र में उन्होंने अपने सतत कामकाज से ऐसी लंबी लकीर खींची है कि किसी कृषि वैज्ञानिक के लिए वहां तक पहुंच पाना एक पहेली जैसा ही रहेगा. वे भारतीय कृषि क्षेत्र के महानायक थे. उन के कामकाज की छाप आज भी भारतीय कृषि क्षेत्र में हर तरफ नजर आती है.
कोरोना काल में भारत किसी दूसरे देश से अन्न मांगने की जगह दाता की भूमिका में रहा, तो इस स्थिति में स्वामीनाथन जैसे नायकों की मेहनत छिपी थी. देश में कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाने में उन के महान योगदान ने उन को जीवनकाल में ही किंवदंती बना दिया था. आखिरी सांस तक वे युवा प्रतिभाओं को आगे लाने और कृषि कल्याण के प्रति समर्पित रहे.
तमिलनाडु के कुंभकोणम में 7 अगस्त, के 1925 को एक स्वाधीनता सेनानी परिवार में उन का जन्म हुआ पिता डा. एमके संबाशिवम विख्यात सर्जन, महात्मा गांधी के अनुयायी और स्वदेशी आंदोलन के नायक थे. खुद के विदेशी कपड़ों को जला कर पिता ने विदेशी आयात पर निर्भरता से मुक्ति और ग्रामोद्योग के विकास का नारा दिया. अछूतों के खिलाफ आंदोलन का हिस्सा रहे. फाइलेरिया उन्मूलन में भी उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई. इन बातों का बालक स्वामीनाथन के दिल पर गहरा असर पड़ा.
जीवन कृषि क्षेत्र को समर्पित
1943 के बंगाल के भयावह अकाल में हुए 20 लाख मौतों ने एमएस स्वामीनाथन के जीवन की राह बदल दी. अपना पूरा जीवन कृषि क्षेत्र को समर्पित करने का फैसला प्रो. एमएस स्वामीनाथन ने कर लिया. महात्मा गांधी की शिक्षाओं से प्रभावित हो कर वे कृषि शिक्षा की ओर बढ़े.
गृह राज्य में शुरुआती पढ़ाई के बाद साल 1947 में दिल्ली में पूसा इंस्टीट्यूट में उन्होंने आनुवांशिकी और पादप प्रजनन में स्नातकोत्तर में दाखिला ले लिया. इसी दौरान भारतीय पुलिस सेवा में उन का चयन हो गया, लेकिन उन्होंने किसानों के लिए काम करने का फैसला किया.
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फार्म एन फूड की ओर से सम्मान पाने वाले किसानों को फ्रेम कराने लायक यादगार भेंट
उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड
'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' के अधिकारी हुए सम्मानित
भारत में काम करने वाली संस्था 'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' से जुड़े 3 अधिकारियों संस्थापक ट्रस्टी सुनील वर्गीस, संस्थापक ट्रस्टी राजेंद्र पाठक और प्रोजैक्ट हैड सुनील पांडेय को गरीबी उन्मूलन और जीरो हंगर पर काम करने के लिए 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से नवाजा गया.
लखनऊ में हुआ उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के किसानों का सम्मान
पहली बार बड़े लैवल पर 'फार्म एन फूड' पत्रिका द्वारा राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' का आयोजन लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में 17 अक्तूबर, 2024 को किया गया, जिस में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से आए तकरीबन 200 किसान शामिल हुए और खेती में नवाचार और तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले तकरीबन 40 किसानों को राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से सम्मानित किया गया.
बढ़ेगी मूंगफली की पैदावार
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 7 अक्तूबर, 2024 को मूंगफली पर अनुसंधान एवं विकास को उत्कृष्टता प्रदान करने और किसानों की आय में वृद्धि करने हेतु मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़ के साथ समझौतापत्र पर हस्ताक्षर किए.
खाद्य तेल के दामों पर लगाम, एमआरपी से अधिक न हों दाम
केंद्र सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों भारतीय सौल्वेंट ऐक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एसईएआई), भारतीय वनस्पति तेल उत्पादक संघ (आईवीपीए) और सोयाबीन तेल उत्पादक संघ (सोपा) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की.
अक्तूबर महीने में खेती के खास काम
यह महीना खेतीबारी के नजरिए य से बहुत खास होता है इस महीने में जहां खरीफ की अधिकांश फसलों की कटाई और मड़ाई का काम जोरशोर से किया जाता है, वहीं रबी के सीजन में ली जाने वाली फसलों की रोपाई और बोआई का काम भी तेजी पर होता है.
किसान ने 50 मीट्रिक टन क्षमता का प्याज भंडारगृह बनाया
रकार की मंशा है कि खेती लाभ का धंधा बने. इस के लिए शासन द्वारा किसान हितैषी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं.
खेती के साथ गौपालन : आत्मनिर्भर बने किसान निर्मल
आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना का लाभ ले कर उन्नत नस्ल का गौपालन कर किसान एवं पशुपालक निर्मल कुमार पाटीदार एक समृद्ध पशुपालक बन गए हैं.
जीआई पंजीकरण से बढ़ाएं कृषि उत्पादों की अहमियत
हमारे देश में कृषि से जुड़ी फल, फूल और अनाज की ऐसी कई किस्में हैं, जो केवल क्षेत्र विशेष में ही उगाई जाती हैं. अगर इन किस्मों को उक्त क्षेत्र से इतर हट कर उगाने की कोशिश भी की गई, तो उन में वह क्वालिटी नहीं आ पाती है, जो उस क्षेत्र विशेष \" में उगाए जाने पर पाई जाती है.
पराली प्रबंधन पर्यावरण के लिए जरूरी
मौजूदा दौर में पराली प्रबंधन का मुद्दा खास है. पूरे देश में प्रदूषण का जहर लोगों की जिंदगी तबाह कर रहा है और प्रदूषण का दायरा बढ़ाने में पराली का सब से ज्यादा जिम्मा रहता है. सवाल उठता है कि पराली के जंजाल से कैसे निबटा जाए ?