जैव उर्वरकों से पोषण प्रबंधन और उपयोग के तरीके
Farm and Food|March First 2024
पिछले कुछ दशकों में आत्मनिर्भरता की स्थिति तक कृषि की वृद्धि में उन्नत किस्म के बीजों, उर्वरकों, सिंचाई जल एवं पौध संरक्षण का उल्लेखनीय योगदान है. वर्तमान ऊर्जा संकट और निरंतर क्षीणता की ओर अग्रसर ऊर्जा स्रोतों के कारण रासायनिक उर्वरकों की कीमतें आसमान छूने लगी हैं.
डा. राहुल कुमार जायसवाल एवं डा. ज्योत्स्ना मिश्रा
जैव उर्वरकों से पोषण प्रबंधन और उपयोग के तरीके

फसलों द्वारा भूमि से लिए जाने वाले प्राथमिक मुख्य पोषक तत्त्वों जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश में से नाइट्रोजन का सर्वाधिक अवशोषण होता है, क्योंकि इस तत्त्व की सब से अधिक आवश्यकता होती है.

इतना ही नहीं, भूमि में डाले गए नाइट्रोजन का 40-50 फीसदी ही फसल उपयोग कर पाते हैं और शेष 55-60 फीसदी भाग या तो पानी के साथ बह जाता है या वायुमंडल में डिनाइट्रीफिकेशन से मिल जाता है या जमीन में ही अस्थायी बंधक हो जाते हैं.

अन्य पोषक तत्त्वों की तुलना में भूमि में उपलब्ध नाइट्रोजन की मात्रा सब से न्यून स्तर की होती है. यदि प्रति किलोग्राम पोषक तत्त्व की कीमत की ओर ध्यान दें, तो नाइट्रोजन ही सब से अधिक कीमती है, इसलिए नाइट्रोजनधारी उर्वरक के एकएक दाने का उपयोग मितव्ययता एवं सावधानी से करना आज की अनिवार्य आवश्यकता हो गई है.

भारत जैसे विकासशील देश में नाइट्रोजन की इस बड़ी मात्रा की आपूर्ति केवल रासायनिक उर्वरकों से कर पाना छोटे और मध्यम श्रेणी के किसानों की क्षमता से परे है. इसलिए फसलों की नाइट्रोजन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए पूरी तरह से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर रहना तर्कसंगत नहीं है.

वर्तमान परिस्थितियों में नाइट्रोजनधारी उर्वरकों के साथसाथ नाइट्रोजन के वैकल्पिक स्रोतों का उपयोग न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि मिट्टी की उर्वराशक्ति को टिकाऊ अक्षुण्ण रखने के लिए भी आवश्यक है. ऐसी स्थिति में जैव उर्वरकों एवं सांद्रिय पदार्थो के एकीकृत उपयोग की नाइट्रोजन उर्वरक के रूप में करने की जरूरत है.

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