प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
प्रथम दुर्गा मां शैलपुत्री
मां दुर्गा को सर्वप्रथम 'शैलपुत्री' के रूप में पूजा जाता है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ 'शैलपुत्री'। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए इन्हें ‘देवी वृषारूढा' के नाम से भी जाना जाता है। देवी के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यह नौ दुर्गा का प्रथम रूप हैं। इन्हें सती के नाम से भी जाना जाता है। इनकी एक मार्मिक कथा भी है:-
एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, किंतु भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। भगवान शंकर ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकर जी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब अपने मायका पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव था। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस कर दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री कहलाईं। पार्वती और हेमवती भी इनके अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। इनका महत्त्व और शक्ति अनंत हैं।
द्वितीय दुर्गा मां ब्रह्मचारिणी
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शक्ति आराधना के साढ़े तीन पीठ
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दीपावली में रंग भरती रंगोली
रंगोली लोकजीवन का एक बहुत ही अभिन्न अंग है। देश के विभिन्न हिस्सों में रंगोली सजाने का अपना अलग-अलग स्वरूप है। दीपावली के मौके पर इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।
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