थकान और ऊब बेहतरीन समय प्रबंधन के दुश्मन हैं। अगर कोई व्यक्ति स्वास्थ्य, उत्साह और ऊर्जा से समृद्ध है तो उसे अपने दिन का परिणाम हमेशा बेहतर मिलता है। ऐसा न हो तो व्यक्ति अपनी ऊर्जा के सबसे उन्नत घंटों में ही सहज ढंग से काम कर पाएगा और शाम तक उत्साह रहित हो जाएगा। इसलिए यह जरूरी है। कि दिन के उत्साहवर्धक और रचनात्मक घंटों को बढ़ाया जाए। दुनिया में ऐसे लोग हैं जो दिन के पांच से छह घंटे काम करके ख़ुश रहते हैं और इसके अलावा किसी भी दायित्व को निभाना उनकी क्षमता के परे होता है। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दिन के दस से बारह घंटे आसानी से काम करते हैं और दिन के अंत भी खुद को थका हुआ महसूस नहीं करते।
अस्सी साल की उम्र में जब थॉमस एल्वा एडिसन से उनके एक दोस्त ने पूछा कि उनकी इस शानदार सफलता का राज़ क्या है तो उनका जवाब था 'पिछले साठ वर्षों से मैं अपनी प्रयोगशाला में 16 से 18 घंटे काम करता हूं।' एडिसन एक अद्भुत व्यक्ति थे। उनकी बराबरी करना बहुत मुश्किल है (हालांकि व्यक्ति को यह कोशिश करनी चाहिए)। इस बात में कोई दो राय नहीं कि वे अपनी प्रयोगशाला में थोड़ी-थोड़े समय की झपकियां लेने का आनंद भी लेते थे, लेकिन रात को वे सिर्फ चार घंटे ही सोते थे। यह वह व्यक्ति था, जिसने काम की कला और स्वस्थ बने रहने के विज्ञान में महारत हासिल की।
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कथाएं चार, सबक़ अपार
कथाएं केवल मनोरंजन नहीं करतीं, वे ऐसी मूल्यवान सीखें भी देती हैं जो न सिर्फ़ मन, बल्कि पूरा जीवन बदल देने का माद्दा रखती हैं - बशर्ते उन सीखों को आत्मसात किया जाए!
मनोरम तिर्रेमनोरमा
अपने प्राकृतिक स्वरूप, ऋषि-मुनियों के आश्रम, सरोवर और सुप्रसिद्ध मेले को लेकर चर्चित गोंडा ज़िले के तीर्थस्थल तिर्रेमनोरमा की बात ही निराली है।
चाकरी नहीं उत्तम है खेती...
राजेंद्र सिंह के घर पर किसी ने खेती नहीं की। लेकिन रेलवे की नौकरी करते हुए ऐसी धुन लगी कि असरावद बुजुर्ग में हर कोई उन्हें रेलवे वाले वीरजी, जैविक खेती वाले वीरजी, सोलर वाले वीरजी के नाम से जानता है। उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी।
उसी से ग़म उसी से दम
जीवन में हमारे साथ क्या होता है उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि हम उस पर कैसी प्रतिक्रिया करते हैं। इसी पर निर्भर करता है कि हमें ग़म मिलेगा या दम। यह बात जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना पर लागू होती है।
एक कप ज़िंदगी के नाम
सिडनी का 'द गैप' नामक इलाक़ा सुसाइड पॉइंट के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस स्थान से जुड़ी एक कहानी ऐसी है, जिसने कई जिंदगियां बचाईं। यह कहानी उस व्यक्ति की है, जिसने अपनी साधारण-सी एक पहल से अंधेरे में डूबे हुए लोगों को एक नई उम्मीद की किरण से रूबरू कराया।
कौन हो तुम सप्तपर्णी?
प्रकृति की एक अनोखी देन है सप्तपर्णी। इसके सात पर्ण मानो किसी अदृश्य शक्ति के सात स्वरूपों का प्रतीक हैं और एक पुष्प के साथ मिलकर अष्टदल कमल की भांति हो जाते हैं। हर रात खिलने वाले इसके छोटे-छोटे फूल और उनकी सुगंध किसी सुवासित मधुर गीत तरह मन को आनंद विभोर कर देती है। सप्तपर्णी का वृक्ष न केवल प्रकृति के निकट लाता है, बल्कि उसके रहस्यमय सौंदर्य की अनुभूति भी कराता है।
यह विदा करने का महीना है...
साल समाप्त होने को है, किंतु उसकी स्मृतियां संचित हो गई हैं। अवचेतन में ऐसे न जाने कितने वर्ष पड़े हुए हैं। विगत के इस बोझ तले वर्तमान में जीवन रह ही नहीं गया है। वर्ष की विदाई के साथ अब वक़्त उस बोझ को अलविदा कह देने का है।
सर्दी में क्यों तपे धरतीं?
सर्दियों में हमें गुनगुनी गर्माहट की ज़रूरत तो होती है, परंतु इसके लिए कृत्रिम साधनों के प्रयोग के चलते धरती का ताप भी बढ़ने लगता है। यह अंतत: इंसानों और पेड़-पौधों सहित सभी जीवों के लिए घातक है। अब विकल्प हमें चुनना है: जीवन ज़्यादा ज़रूरी है या फ़ैशन और बटन दबाते ही मिलने वाली सुविधाएं?
ख़ुशियों का पेड़
जैसे ही क्रिसमस का मौसम दस्तक देता है, हर कोने में एक ख़ास चमक बिखर जाती है। इस चमक का एक स्रोत होता है वह क्रिसमस ट्री, जो सिर्फ़ सजावट नहीं, बल्कि एक जश्न, एक उम्मीद और एक साथ होने का प्रतीक बनकर सामने आता है। इसकी हर शाखा हमें याद दिलाती है कि सर्दियों के ठंडे और अंधेरे दिनों में भी रोशनी और खुशियां बस सकती हैं।
हर अंत एक नया आरंभ होता है
जीवन में सफल होने के लिए संकल्प, प्रयास और धैर्य की आवश्यकता होती है। लेकिन रास्ते में आने वाली बाधाएं अक्सर मनोबल को कमज़ोर कर देती हैं और व्यक्ति विफल महसूस करने लगता है। इसके बावजूद साहस और सूझबूझ के साथ निरंतर प्रयास करने से अंत में सफलता अवश्य प्राप्त होती है। हनुमानजी, भगीरथ और अन्य पात्रों की कथाएं यही संदेश दे रही हैं।