'मुझे बहुत टेंशन दीजिए'- 25-26 वर्ष के इंजीनियर ने एक प्रशिक्षण के दौरान अजीबोगरीब मांग रखी। 'आपको किस विषय पर प्रशिक्षण चाहिए?' वह युवक मेरे इस प्रश्न के उत्तर में बोल रहा था। वास्तव में, 'मुझे तनाव चाहिए' जैसी कोई चाह कभी मेरे सुनने में नहीं आई थी, लेकिन युवक स्पष्ट रूप से यही मांग रहा था। उसने कुछ ठहरकर आगे कहा, 'लेकिन मुझे सिर्फ़ तनाव मत दीजिए, साथ में इस तनाव को किस प्रकार संभालूं, इसका प्रशिक्षण भी दीजिए।'
बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत उस युवा इंजीनियर ने बाद में अपनी इस विचित्र मांग का कारण भी बताया, 'जब मैंने कंपनी जॉइन की थी उस समय मेरे एक वरिष्ठ ने हमेशा मुझे बहुत सहयोग किया। वे परिश्रमी, कर्तव्यनिष्ठ और कार्यक्षम थे। इन गुणों की बदौलत बेहतर काम के चलते उन्हें जल्दी-जल्दी पदोन्नतियां मिलती गईं। मात्र तीन वर्ष में ही उन्होंने काफ़ी प्रगति कर ली और आज कंपनी में ऊंचे ओहदे पर हैं। लेकिन अब उनके स्वभाव में परिवर्तन आ गया है। बात-बेबात गुस्सा करना, चिड़चिड़ाहट, लगातार 12-12 घंटे काम में डूबे रहना आम बात है। मैं देख रहा हूं कि एक हंसता-मुस्कराता, मिलनसार व्यक्ति गुस्सैल और चिड़चिड़े में बदल गया है।'
यही सच्चाई है। आप जितने बड़े ओहदे पर जाएंगे, तनाव उतना अधिक रहेगा। इन सभी परिस्थितियों में तनाव का निराकरण करने का हुनर आप में नहीं है तो पदोन्नति एक सज़ा से कम नहीं होगी।
घर हो या दफ़्तर, तनाव कितना होगा यह भावनाओं पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति के लिए एक परिस्थिति बड़ी कष्टदायक हो सकती है, वहीं दूसरे को उसी परिस्थिति में अवसर नज़र आ सकते हैं। कोई व्यक्ति प्रतिकूल टिप्पणी में अपना अपमान देखता है तो किसी अन्य को उसमें छिपी ईर्ष्या नज़र आती है, जो कि प्रच्छन्न प्रशंसा होती है।
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अंतरिक्ष केंद्र सतीश धवन
श्रीहरिकोटा स्थित उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र का नाम जिनके नाम पर 'सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र' है, वे सही मायनों में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के केंद्र रहे हैं।
हरी-हरी धरती पर हर
वर्षा की विदाई वेला है। नदियों का कलकल निनाद गूंज रहा है, धरती ने हरीतिमा की चादर ओढ़ रखी है, प्रकृति का हर हिस्सा खिला-खिला, मुस्कराता-सा लग रहा है।
गजानन सुख कानन
भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी श्रीगणेश के आगमन की पुण्यमय तिथि है। देव अपना लोक छोड़ मर्त्य मानवों के निवास में उन्हें तारने आ बैठते हैं।
जब मंदिर में उतर आता है चांद
यायावर के सफ़र में तयशुदा गंतव्य तो उसका पसंदीदा होता ही है, राह के औचक पड़ाव भी कोई कम मोहक नहीं होते। बस, दरकार होती है एक खुले दिल और उत्सुक नज़र की। महाराष्ट्र के फलटण से खिद्रापुर के बीच की दूरी यात्रा की परिणति से पहले के छोटे-छोटे आनंद को संजोए हुए है इस बार की यायावरी।
भावनाओं के क़ैदी...
भावनाएं और तर्क हमारे व्यक्तित्व के दो अहम हिस्से हैं और दोनों ही ज़रूरी हैं। लेकिन कभी भावनाएं प्रबल हो जाती हैं तो तार्किक बुद्धि मौन हो जाती है। इसके चलते तनाव बेतहाशा बढ़ जाता है, आवेग में निर्णय ले लिए जाते हैं और फिर अक्सर पछताना ही पड़ता है। यही 'इमोशनली हाईजैक' होना है। जीवन का सुकून इससे उबरने की हमारी क्षमता पर निर्भर करता है।
मेरा वो मतलब नहीं था!
हमारे शब्द सामने वाले को चोट पहुंचा जाते हैं, फिर हम माफ़ी मांगते हुए सफाई देते हैं कि हमारा वह इरादा नहीं था। सवाल उठता है कि अगर इरादा नहीं था तो फिर वैसे शब्द मुंह से निकले कैसे?
...जहां चाह वहां हिंदी की राह
भाषा के मामले में असल चीजें हैं प्रवाह और प्रयोग...हिंदी शब्द समझने में सरल होंगे, अर्थ को ध्वनित करेंगे, और उनका नियमित प्रयोग होगा तो किसी भी क्षेत्र में अंग्रेज़ी शब्दों की घुसपैठ के लिए कोई बहाना ही नहीं बचेगा...
हिंदी के ज्ञान से सरल विज्ञान
पहले हमने दुनिया को विज्ञान का ज्ञान दिया और अब खुद एक विदेशी भाषा में विज्ञान पढ़ रहे हैं। इस बीच आख़िर हुआ क्या? विज्ञान आगे बढ़ गया और हिंदी पीछे रह गई या फिर हमने अपनी भाषा की क्षमता को जाने बग़ैर ही उसे अक्षम मान लिया?
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कोई बोली, भाषा बनती है जब वह लिखी जाती है, उसमें साहित्य रचा जाता है और विविध विषयों पर किताबें छपती हैं। पुस्तकों में भाषा का सुघड़ रूप होता है। हिंदी भाषा की विडंबना है कि उसकी किताबों में अंग्रेज़ी शब्दों की आमद बढ़ती जा रही है। कुछ को यह ज़रूरी लगती है तो बहुतों को किरकिरी। सबके अपने तर्क हैं। 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर आमुख कथा का पहला लेख इस अहम मुद्दे पर पड़ताल कर रहा है कि हिंदी किताबों में हिंदी क्यों घटती जा रही है?