प्यार से आसमान को चाहे नीली छतरी कहिए, अपने देश को अपना गांव, चाहे तो चांद को सूरज का चचेरा भाई कहिए, पर दोसा 'आंबोली' होता है, यह प्यार मैंने पहली बार देखा। हैरानी से देखा कि आंबोली कहने पर जो खाने की मेज़ पर आया वह तो दोसे जैसा था। यह जाना जब इसी साल 17 अप्रैल को विटा शहर में जाना हुआ। न-न, विटा शहर नहीं, जाना तो खिद्रापुर था, पर उस सफ़र में विटा को आना था। कौन नहीं जानता कि शहर-शहर के बीच में भी शहर होते हैं।
दोसे की चचेरी बहन से भेंट
तो महाराष्ट्र स्थित फलटण से 100 किलोमीटर की दूरी पर जो विटा है, वह सांगली जिले की हद में आता है। वही सांगली जिसके पूर्व राजपरिवार के विजयसिंग राव माधवराव पटवर्धन की पुत्री भाग्यश्री हैं। 'मैंने प्यार किया' फिल्म की इस नायिका का नाता सांगली के शाही परिवार से है। ख़ैर, विटा तो सफ़र के बीच में चला आया था। बीच सफ़र में रुककर चाय पानी के बारे में जब सोचा, चलती सड़क पर शिवाजी चौक के सामने वह छोटा-सा रेस्तरां मिल गया था जो उडपी दोसे का केंद्र था। दोसा तो वैसे भी कर्नाटक के उडपी की देन है। वहां जाकर जब न्यू में आंबोली लिखा देखा तो लगा कि यह कुछ नया है। और आंबोली की थाली मेज़ पर सजी आई तो पता चला कि यह तो अपना दोसा है, चिर-परिचित मसाला दोसा।
विटा के उस उडपी रेस्तरां के मालिक ने बताया कि वे दोसे के कारोबार के लिए उडपी से वहां आकर बसे हैं। लोगबाग़ जहां रोटी के लिए दरबदर होते हैं, वहां वे दोसा लेकर आए थे, जो उन्हें 'रोटी' दिलाता है। उन्हीं से जाना कि सांगली वासी दोसे को आंबोली बोलते हैं, जो दोसे की महाराष्ट्रियन चचेरी बहन है। दोसे के रिश्तेदार से परिचित कराने वाले इस शहर के शिवाजी चौक से निकलती सड़क आगे तासगाव की ओर जाती है। सड़क पुरानी है जो नए शहर का रास्ता दिखाती है।
अंगूर नगर में कोशिए जैसा प्रस्तर
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...जहां चाह वहां हिंदी की राह
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हिंदी के ज्ञान से सरल विज्ञान
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