शिक्षा विभाग में कार्यरत संदीप अपने 17 वर्षीय बेटे के व्यवहार को लेकर परेशान थे। मैंने पूछा कि उनका अपने बेटे के साथ रिश्ता कैसा है? मैं कुछ और कह पाता इससे पहले ही संदीप बोल पड़े कि वो बहुत खुले दिमाग़ के पिता हैं। उनका अपने पुत्र के साथ दोस्ती का रिश्ता है। उन्होंने बेटे को पूरी आज़ादी दे रखी है। वह उनसे अपनी सारी बातें भी शेयर करता है। और फिर बातों-बातों में उन्होंने बेटे के बारे में एक किस्सा सुनाया। कुछ दिनों से उनका बेटा स्कूल का होमवर्क नहीं करके जा रहा था। इतवार का दिन था। उन्होंने बेटे को बुलाकर कहा कि जब तक तुम आज तक का सारा होमवर्क पूरा नहीं कर लेते तब तक रात को सोने नहीं जाना। बेटे ने एक-दो दिन का समय चाहा, लेकिन संदीप ने सख़्ती से मना कर दिया।
अब वे दुविधा के शिकार हैं। संदीप अकेले नहीं हैं। उन जैसे लाखों किशोरवय बच्चों के अभिभावक एक तरफ़ तो समय और माहौल के हिसाब से या कहीं देख, सुन, पढ़कर अपने बच्चों के दोस्त बनना चाहते हैं, दूसरी तरफ़, वे पारंपरिक पालक भी ब रहना चाहते हैं जहां बच्चों पर सख़्ती दिखा सकें, चाहते हैं कि बच्चे चुपचाप उनके आदेशों का पालन करें, आदि। यह दुविधा वर्तमान पीढ़ी के अभिभावकों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि इसका कैसे और क्या समाधान करें। इनमें से अधिकतर को तो संदीप की तरह शायद पता भी नहीं होगा कि उनकी पैरैंटिंग में विरोधाभास है। जैसे संदीप कहते हैं, ‘अभिभावक होने के नाते इतना हक़ तो हमें अपने बच्चों पर होना ही चाहिए कि ज़रूरत पड़ने पर हम उनके साथ कठोर हो सकें।'
बच्चों से दोस्ती में हर्ज़ ही क्या है!
लेकिन यदि आप अपने बच्चों के दोस्त हैं तो क्या ऐसा करना सही होगा? एक एडवेंचर स्पोर्ट्स कंपनी के मालिक सत्यवान सांगवान की बेटी ग्रैजुएशन कर रही है जबकि बेटा दसवीं कक्षा में पढ़ता है। वे इस दुविधा से पूरी तरह बाहर निकल चुके हैं और अपने बच्चों के साथ दोस्त की भूमिका में सहज हैं। सत्यवान कहते हैं, ‘यदि आप बच्चों के दोस्त हैं और बने रहना चाहते हैं तो आपको यही भूमिका निभानी होगी। एक दोस्त की तरह ही न सिर्फ़ बात करनी होगी, बल्कि व्यवहार भी करना होगा। आप अपना रोल बार-बार स्विच नहीं कर सकते। इससे बच्चे भी नहीं समझ पाएंगे कि उनके अभिभावक का असली रूप कौन-सा है।'
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कथाएं चार, सबक़ अपार
कथाएं केवल मनोरंजन नहीं करतीं, वे ऐसी मूल्यवान सीखें भी देती हैं जो न सिर्फ़ मन, बल्कि पूरा जीवन बदल देने का माद्दा रखती हैं - बशर्ते उन सीखों को आत्मसात किया जाए!
मनोरम तिर्रेमनोरमा
अपने प्राकृतिक स्वरूप, ऋषि-मुनियों के आश्रम, सरोवर और सुप्रसिद्ध मेले को लेकर चर्चित गोंडा ज़िले के तीर्थस्थल तिर्रेमनोरमा की बात ही निराली है।
चाकरी नहीं उत्तम है खेती...
राजेंद्र सिंह के घर पर किसी ने खेती नहीं की। लेकिन रेलवे की नौकरी करते हुए ऐसी धुन लगी कि असरावद बुजुर्ग में हर कोई उन्हें रेलवे वाले वीरजी, जैविक खेती वाले वीरजी, सोलर वाले वीरजी के नाम से जानता है। उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी।
उसी से ग़म उसी से दम
जीवन में हमारे साथ क्या होता है उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि हम उस पर कैसी प्रतिक्रिया करते हैं। इसी पर निर्भर करता है कि हमें ग़म मिलेगा या दम। यह बात जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना पर लागू होती है।
एक कप ज़िंदगी के नाम
सिडनी का 'द गैप' नामक इलाक़ा सुसाइड पॉइंट के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस स्थान से जुड़ी एक कहानी ऐसी है, जिसने कई जिंदगियां बचाईं। यह कहानी उस व्यक्ति की है, जिसने अपनी साधारण-सी एक पहल से अंधेरे में डूबे हुए लोगों को एक नई उम्मीद की किरण से रूबरू कराया।
कौन हो तुम सप्तपर्णी?
प्रकृति की एक अनोखी देन है सप्तपर्णी। इसके सात पर्ण मानो किसी अदृश्य शक्ति के सात स्वरूपों का प्रतीक हैं और एक पुष्प के साथ मिलकर अष्टदल कमल की भांति हो जाते हैं। हर रात खिलने वाले इसके छोटे-छोटे फूल और उनकी सुगंध किसी सुवासित मधुर गीत तरह मन को आनंद विभोर कर देती है। सप्तपर्णी का वृक्ष न केवल प्रकृति के निकट लाता है, बल्कि उसके रहस्यमय सौंदर्य की अनुभूति भी कराता है।
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बाल गीतों में दादा कहकर संबोधित किया जाने वाला हाथी सचमुच इतना शक्तिशाली होता है कि बाघ और बब्बर शेर तक उससे घबराते हैं। बावजूद इसके यह किसी पर भी यूं ही आक्रमण नहीं कर देता, बल्कि अपनी देहभाषा के ज़रिए उसे दूर रहने की चेतावनी देता है। जानिए, संस्कृत में हस्ती कहलाने वाले इस अलबेले पशु की अनूठी हस्ती के बारे में।
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सर्दियों में हमें गुनगुनी गर्माहट की ज़रूरत तो होती है, परंतु इसके लिए कृत्रिम साधनों के प्रयोग के चलते धरती का ताप भी बढ़ने लगता है। यह अंतत: इंसानों और पेड़-पौधों सहित सभी जीवों के लिए घातक है। अब विकल्प हमें चुनना है: जीवन ज़्यादा ज़रूरी है या फ़ैशन और बटन दबाते ही मिलने वाली सुविधाएं?
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रतन टाटा देशवासियों के लिए क्या थे इसकी एक झलक मिली सोशल मीडिया पर, जब अक्टूबर में उनके निधन के बाद हर ख़ास और आम उन्हें बराबर आत्मीयता से याद कर रहा था। रतन किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और महज़ दो माह पहले ही उनके बारे में काफ़ी कुछ लिखा भी गया। बावजूद इसके बहुत कुछ लिखा जाना रह गया, और जो लिखा गया वह भी बार-बार पढ़ने योग्य है। इसलिए उनके जयंती माह में पढ़िए उनकी ज़िंदगी की प्रेरक किताब। रतन टाटा के समूचे जीवन को चार मूल्यवान शब्दों की कहानी में पिरो सकते हैं: परिवार, पुरुषार्थ, प्यार और प्रेरणा। उन्हें नमन करते हुए, आइए, उनकी बड़ी-सी ज़िंदगी को इस छोटी-सी किताब में गुनते हैं।