बिट्रिस डिगिल्डर नीदरलैंड की टिलबर्ग यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और शोधकर्ता हैं। वे कई वर्षों से ऐसे लोगों पर रिसर्च कर रही हैं जिनकी किसी कारणवश एक आंख की रोशनी चली गई है। बिट्स अपने शोध में यह पता लगाना चाहती हैं कि एक व्यक्ति अपनी सही आंख से क्या देखता है। और ख़राब आंख से क्या महसूस कर सकता है।
दरअसल, जब हम किसी चीज़ को देखते हैं तो हमारी आंखों के रास्ते उसका प्रतिबिंब ऑप्टिक नर्व से होते हुए विज़ुअल कॉर्टेक्स तक जाता है। लेकिन जब विज़ुअल कॉर्टेक्स ख़राबी आ जाती है तो हम जो प्रतिबिंबों का सिग्नल वहां तक नहीं पहुंचता है और चीजें दिखाई नहीं देती हैं।
बिट्रिस डिगिल्डर ने शोध के दौरान जब ऐसे लोगों को जिनकी एक आंख खराब थी उन्हें सही व ख़राब आंख से अलग-अलग चित्र दिखाए तब उन्होंने यह नोटिस किया कि सही आंख से व्यक्ति केवल 'न्यूट्रल तस्वीरें' ही देख पा रहा था, जबकि ख़राब आंख से उसने तस्वीर में मौजूद भावनाओं को भी पहचाना और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया दी। अपने शोध में बिट्रिस ने यह पता लगाया कि जब हमारा विजुअल कॉर्टेक्स' ख़राब हो जाता है तो हमारी आंख के रास्ते जो सिग्नल जाता है वह एनेक्डेला सुपरकोलीकोलस सहित दिमाग़ के छह अन्य भागों में चला जाता है। ये हिस्से उन चीज़ों का भी अनुभव कर सकते हैं जो हमारा विज़ुअल कॉर्टेक्स नहीं कर सकता है। हालांकि अभी तक दिमाग़ के ऐसे केवल एक भाग अर्थात एनेक्डेला सुपरकोलीकोलस के बारे में ही प्रामाणिक रूप से पता चला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारे दिमाग़ के बाकी सेंसर हमारी पांच इंद्रियों के नीचे दबे रहते हैं और किसी विशेष परिस्थिति में सक्रिय होते हैं। इसे एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन (ESP) के नाम से भी जाना जाता है जो उन बातों का अनुभव करते हैं जो हमारी पांच इंद्रियां नहीं कर सकती हैं।
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