
व्यावहारिक ज्ञान बताता है कि क़िस्मत को नियंत्रित नहीं व्या किया जा सकता। यह मौकों और संभावनाओं से जुड़ी है। न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलर 'हार्ट, स्मार्ट्स, गट्स एंड लक' के सहलेखक एंथनी जान के अनुसार क़िस्मत तीन प्रकार की होती है:
• परिस्थिति से जुड़ी क़िस्मत: मैं अपने दोस्त के साथ किसी दूसरे की डिनर पार्टी में गया, वहां मेरा परिचय किसी से कराया गया। हम एक-दूसरे को पसंद करने लगे, घूमे फिरे और फिर शादी कर ली। सही समय पर सही जगह उपस्थित होने के कारण ही ऐसा हो पाया। परिस्थितियों ने ही इसे संभव बनाया।
• जन्म के कारण: उम्र, जाति, विरासत, संस्कृति या पालनपोषण के कारण आपको एक निश्चित परिणाम देखना पड़ता है। उदाहरण के लिए, किसी कंपनी में आपकी उन्नति इस वजह से होना कि आप बॉस के शहर से आए हैं, यह प्राकृतिक क़िस्मत है।
• मूक क़िस्मतः उस प्रकार की क़िस्मत जहां कोई भी कारण और परिणाम का पता नहीं लगा सकता। कोई लॉटरी लगना या रास्ते में हज़ार रुपये का नोट पड़ा मिलना मूक क़िस्मत के उदाहरण हैं।
हेल्ज़बर्ग की क़िस्मत कैसे खुली?
यद्यपि जन्म से संबंधित और मूक क़िस्मत को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है, लेकिन परिस्थिति संबंधी क़िस्मत के सिलसिले में मौक़ों को बढ़ाया जा सकता है।
कैसे? बस ऐसे मौकों को बढ़ाकर, जहां कुछ संभावना मिल सकती हो, और फिर उनमें से बेहतरीन की तलाश कर आप अपना बेस्ट दे सकते हैं।
लेकिन कोई कैसे मौक़ों को बढ़ाकर (रेज़), बेहतर की पहचान (रिकॉग्नाइज़) करके, बेहतर प्रतिक्रिया (रिस्पॉन्ड) कर सकता है? इसे समझने के लिए एक वास्तविक घटना का उदाहरण लेते हैं:
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वन के दम पर हैं हम
भौतिक विकास के रथ पर सवार मानव स्वयं को भले ही सर्वशक्तिमान और सर्वसमर्थ समझ ले, किंतु उसका जीवन विभिन्न जीव-जंतुओं से लेकर मौसम और जल जैसे प्रकृति के आधारभूत तत्वों पर आश्रित है।

दिखता नहीं, वह भी बह जाता है!
जब भी पानी की बर्बादी की बात होती है तो अक्सर लोग नल से बहते पानी, प्रदूषित होते जलस्रोत या भूजल के अंधाधुंध दोहन की ओर इशारा करते हैं।

वन का हर घर मंदिर
जनजाति समाज घर की ड्योढ़ी को भी देवी स्वरूप मानता है। चौखट और डांडे में देवता देखता है। यहां तक कि घर के बाहर प्रांगण में लगी किवाडी पर भी देवता का वास माना जाता है।

ताक-ताक की बात है
पहले घरों में ताक होते थे जहां ज़रूरी वस्तुएं रखी जाती थीं। अब सपाट दीवारें हैं और हम ताक में रहने लगे हैं।

किताबें पढ़ने वाली हीरोइन.
बॉलीवुड में उनका प्रवेश मानो फूलों की राह पर चलकर हुआ। उनकी शुरुआती दो फिल्मों- कहो ना प्यार है और ग़दर-ने इतिहास रच दिया। बाद में भी कई अच्छी फिल्मों से उनका नाम जुड़ा।

फ़ायदे के रस से भरे नींबू
रायबरेली के 'लेमन मैन' आनंद मिश्रा को कौन नहीं जानता! अच्छी आय की नौकरी को छोड़कर वे पैतृक गांव में लौटे और दो एकड़ कृषि भूमि पर नींबू की खेती करके राष्ट्रीय पहचान बनाई। प्रस्तुत है, उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी।

जहां देखो वहां आसन
योगासन शरीर को तोड़ना-मरोड़ना नहीं है, बल्कि ये प्रकृति की सहज गतियां और स्थितियां हैं। आस-पास नज़रें दौड़ाकर देखने से पता लगेगा कि सभी आसन जीव-जंतुओं और वनस्पतियों से ही प्रेरित हैं, चाहे वो जंगल का राजा हो, फूलों पर मंडराने वाली तितली या ताड़ का पेड़।

बांटने में ही आनंद है
दुनिया में लोग सामान्यत: लेने खड़े हैं, कुछ तो छीनने भी । दान तो देने का भाव है, वह कैसे आएगा! इसलिए दान के नाम पर सौदेबाज़ी होती है, फ़ायदा ढूंढा जाता है। इसके ठीक उलट, वास्तविक दान होता है स्वांतः सुखाय- जिसमें देने वाले की आत्मा प्रसन्न होती है।
बहानेबाज़ी भी एक कला है!
कई बार कितनी भी कोशिश कर लो, ऑफिस पहुंचने में देर हो ही जाती है, ऐसे में कुछ लोग मासूम-सी शक्ल बना लेते हैं तो कुछ लोग आत्मविश्वास के साथ कुछ बहाना पेश करते हैं। और बहाने भी ऐसे कि हंसी छूट जाए। बात इन्हीं बहानेबाज़ लोगों की हो रही है।

बहानेबाज़ी भी एक कला है!
कई बार कितनी भी कोशिश कर लो, ऑफिस पहुंचने में देर हो ही जाती है, ऐसे में कुछ लोग मासूम-सी शक्ल बना लेते हैं तो कुछ लोग आत्मविश्वास के साथ कुछ बहाना पेश करते हैं। और बहाने भी ऐसे कि हंसी छूट जाए। बात इन्हीं बहानेबाज़ लोगों की हो रही है।