एक वीगन का खानपान
Aha Zindagi|November 2024
अगर आप शाकाहारी हैं तो आप पहले ही 90 फ़ीसदी वीगन हैं। इन अर्थों में वीगन भोजन कोई अलग से अफ़लातूनी और अजूबी चीज़ नहीं। लेकिन एक शाकाहारी के नियमित खानपान का वह जो अमूमन 10 प्रतिशत हिस्सा है, उसे त्यागना इतना सहज नहीं । वह डेयरी पार्ट है। विशेषकर भारत के खानपान में उसका अतिशय महत्व है। वीगन होने की ऐसी ही चुनौतियों और बावजूद उनके वन होने की ज़रूरत पर यह अनुभवगत आलेख.... 1 नवंबर को विश्व वीगन दिवस के ख़ास मौके पर...
सुशोभित
एक वीगन का खानपान

मुझे हुए अब दो साल से भी अधिक समय हो गया है। इस समयावधि में मेरे कुछ अनुभव रहे हैं। एथिकल-वीगनिज़्म का अर्थ एक ऐसी जीवनशैली का निर्वाह होता है, जिसमें पशुओं के साथ किसी प्रकार की हिंसा न हो। यह केवल भोजन तक ही सीमित नहीं है, लेकिन भोजन इसका एक बड़ा हिस्सा है। बहुत सारे लोग स्वास्थ्य कारणों से भी वीगन बनते हैं, विशेषकर वे जो लैक्टोस-इनटॉलरेंट हों और दूध से निर्मित उत्पादों के साथ सहज नहीं। विटामिन बी-12 को छोड़कर हर पोषक तत्व शाकाहारी भोजन से प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन नॉन-वीगन और यहां तक कि मांसाहारी भारतीयों में भी अमूमन विटामिन बी-12 की डेफिशिएंसी रहती है, जिसके लिए उन्हें सप्लीमेंट लेना होता है।

सबसे बड़ी है जो चुनौती

इन दो वर्षों की सबसे बड़ी चुनौती मेरे लिए सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक रही है। पश्चिम में किसी के वीगन होने और भारत में किसी के वीगन होने में बहुत अंतर है। पश्चिमी देशों का दूध और उससे निर्मित वस्तुओं से भारत सरीखा सांस्कृतिक और भावनात्मक संबंध नहीं है। भारत में दूध, दही, घी, मक्खन, छाछ, पनीर, खोया और छेना के हज़ार सांस्कृतिक आयाम हैं, कोई उत्सव या त्योहार इनसे निर्मित सामग्रियों के बिना पूरा नहीं होता। वीगन बनने से पूर्व मैं दूध से निर्मित मिठाइयों का नित्य ही सेवन करता था। किसी नए शहर जाता तो पहले उसकी प्रसिद्ध मिठाइयों का भोग लगाना, कोई मित्र किसी शहर से आ रहा हो तो उससे कह देना कि वहां की मिठाइयां लेते आना या भेंट में भिजवा देना- यह आदत थी। मैंने 'एक मिठाईलाल की बही' शीर्षक से लेखमाला लिखी हैं। मेरी पुस्तक 'अपनी रामरसोई' का आधे से ज़्यादा हिस्सा मिठाइयों पर एकाग्र है। फिर दिन में दो-तीन मर्तबा चाय-कॉफ़ी का सेवन तो सभी की तरह होता ही था। वैसे किसी व्यक्ति का सहसा वीगन हो जाना उसके जीवन में जैसा रागात्मक-शून्य पैदा कर देता है, रोज़मर्रा की आदतों में एक अभाव रच देता है या उत्सवों-समारोहों में सब लोगों के बीच वह जैसे अन्यीकरण (एलीनिएशन) का अनुभव करता है, वह भारत में वीगन होने की बड़ी चुनौती है।

विकल्प हैं पर मिलते नहीं

This story is from the November 2024 edition of Aha Zindagi.

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