सुखद सर्दियां
Aha Zindagi|December 2024
सर्दियां आते ही हर ओर जैसे एक अदृश्य मृदुलता बिछ जाती है। ठंड के इन महीनों में प्रकृति एक नए रंग में रंगी दिखाई देती है। सुबह की धुंधली चादर में ओस की बूंदें मोतियों की तरह जगमगाती हैं और पेड़ों के पत्ते जैसे किसी गूढ़ गाथा को सहलाते हुए हौले-से गुनगुनाते हैं। 'सुखद सर्दियां' शब्द युग्म से एक ऐसे अद्वितीय अनुभव की छवि उभरती है जो समूचे अंतर्मन को आनंदित कर देती है।
परिचय दास
सुखद सर्दियां

सर्दियों का अपना अलग ही राग होता है, जिसमें कभी ठिठुरन की थाप है तो कभी धूप की मृदुलता। सर्दी का मौसम केवल ठंड का परिचायक नहीं है, यह वह काव्यात्मक अनुभूति है जो हमें जीवन के नए अर्थों से रूबरू कराती है। सर्दी के मौसम का वह 'राग-रंग' सजीव हो उठता है जो हमें हमारे परिवेश से जोड़ता है, हमारी जड़ों से परिचित कराता है।

सर्दियों की भोर उस नवजात शिशु के समान है जिसे अपनी कोमलता से ही संसार को आकर्षित करना आता है। इसमें वह लालित्य छिपा है जो सर्दियों की हर सुबह में दिखाई देता है। सुबह का सूरज कोहरे को चीरता हुआ धीरे-धीरे धरती पर उतरता है जैसे मां की गोद में सुकून से सोया हुआ कोई बालक। यह दृश्य, मानो धरती और आकाश के मध्य एक कोमल संबंध की गाथा कह रहा हो।

सर्दियों के दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं। जैसे-जैसे रात गहराती है, ठंड भी तीव्र होने लगती है लेकिन यह ठंड हमें अनचाहे रूप में नहीं घेरती बल्कि जैसे कोई मीत पास आकर धीरे-धीरे गुदगुदी करता है। ठंड का यह आलिंगन न केवल शरीर को बल्कि आत्मा को भी गुनगुना करता है। उनकी इस भावना में वह आत्मीयता निहित है जो सर्दियों के मौसम को महज़ एक ऋतु नहीं बल्कि जीवन की एक अनिवार्य सजीवता बनाती है।

जैसे अपने भीतर जीवन का नवपथ

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वन के दम पर हैं हम
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जब भी पानी की बर्बादी की बात होती है तो अक्सर लोग नल से बहते पानी, प्रदूषित होते जलस्रोत या भूजल के अंधाधुंध दोहन की ओर इशारा करते हैं।

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वन का हर घर मंदिर
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ताक-ताक की बात है
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किताबें पढ़ने वाली हीरोइन.
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