जीवनसाथी जो एक-दूसरे का जीवन भर का साथ देने का वादा करते हैं। उनका यह सफर और भी खूबसूरत तब बन जाता है, जब उनकी जिंदगी में नन्हे मेहमानों की आमद होती है। यह अहसास जिंदगी को खूबसूरत बनाने के साथ ही पूरा भी कर जाता है। वक्त गुजरता है और बच्चे बड़े हो जाते हैं। फिर माता-पिता की जिंदगी में एक ऐसा वक्त आता है जो उन्हें चिंता, दुख, अकेलेपन सरीखे भवों में डुबो जाता है। इस स्थिति को हम एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम के नाम से जानते हैं। जब आपके घोसले की नन्ही चिड़िया उड़ान भरने के लिए तैयार होती है। बच्चे अपनी नई जिंदगी की ओर कदम बढ़ाते हैं और माता-पिता वहीं रुके उन्हें जाता हुआ देखते हैं। यकीनन यह अहसास, यह वक्त आसान नहीं होता है। तमाम भावनात्मक उतार-चढ़ावों के बीच थक रहे कदमों और झुक रहे कंधों को एक बार फिर से मजबूत करना होता है और साथ ही अपने पार्टनर का साथ भी देना होता है।
क्या है एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम?
एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम उदासी या भावनात्मक उथलपुथल का वह दौर है, जिससे माता-पिता तब गुजरते हैं जब उनके बच्चे बड़े होकर अपने नए घोसलों की ओर रुख करते हैं और मां-बाप कहीं थोड़ा पीछे रह जाते हैं। बच्चों के कॉलेज की शुरुआत में अकसर यह शब्द सुनने के लिए मिलता है। यह कुछ मिले-जुले भावों को जगाता है जैसे चिंता, उत्तेजना, राहत और उदासी आदि। ऐसे में एक बार अभिभावक के रूप में आप दोनों को अपने बच्चे पर गर्व होता है, तो साथ ही अपनी ममता, प्यार, लगाव के चलते अभिभावक दुखी भी होते हैं।
ये हैं लक्षण
हर शख्स अलग होता है। वैसे ही होते हैं उसके भाव भी। एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम की परेशानी भी सब पर अलग-अलग तरह से नजर आती है।
• अपने प्यारे बच्चे के जाने के बाद आप खुद को बहुत अकेला महसूस करती हैं। एक वह आपके साथ नहीं है, यह ख्याल आपको अलग-थलग कर सकता है।
This story is from the December 10, 2022 edition of Anokhi.
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