"ऋतु, एक बुरी खबर है," सुबहसुबह मां ने फोन पर कहा.
"क्या हुआ मां, दिल घबरा रहा है आप की बात सुन कर," ऋतु घबराते हुए बोली.
"शुक्र है बेटी, बिगड़ते बिगड़ते सब ठीक हो गया."
"पहेलियां न बुझाओ, मां सीधेसीधे बताओ कि बात क्या है? मेरा दिल बैठा जा रहा है."
"बेटी, वह नीलकंठ..." कहते हुए मां की आवाज पलभर को गले में ही रुंध गई.
"क्या हुआ नीलकंठ को ?" मां को यों खामोश देख ऋतु टोकते हुए बोली.
"उस ने सुसाइड करने की कोशिश की. वह तो अच्छा था कि समय से देख लिया उस के दोस्त ने और बचा लिया."
"मगर, यह सब कब और कहां हुआ? क्या वह घर आया था?"
"घर कहां बेटी, वहीं होस्टल में..." कहते हुए मां ने इधरउधर की कुछ बातें और कीं और फोन रख दिया. नीलकंठ के बारे में सोचते हुए ऋतु उलझ गई अतीत के गलियारों में.
बेचारा नीलकंठ, जाने क्या लिखा है उस की जिंदगी में. उन के पड़ोसी सूरज काका और निर्मला काकी का बेटा है वह बचपन में वक्त साथ बिताया है उस ने नीलकंठ और उस की बहन रानू के साथ गांव के घरों में बड़े बड़े आंगनों के बीच कच्ची सी दीवार ही तो थी दोनों के घरों के बीच, मगर रिश्ते कच्चे नहीं थे. एक हंसताखेलता परिवार था. न जाने किस बात की सजा मिल रही है.
सूरज काका सीधेसच्चे इंसान थे. जब रानू के बाद बेटे का जन्म हुआ तो उन्होंने उस का नाम नीलकंठ रखा.
छोटा था तब कैसे चहकचहक कर कहता नीलकंठ, 'ऋतु दीदी, देखो मेरा घोड़ा कैसे तिगड़कतिगड़क चलता है.'
कभी वह अपनी नकली पिस्तौल हाथ में ले काठ के घोड़े पर बैठ कर कहता, 'देखना दीदी, बड़ा हो कर न, मैं घोड़े की सवारी कर दुश्मनों को यों टायंटायं मार गिराऊंगा.'
कभी सैल्यूट करते हुए सेना का अफसर, तो कभी पायलट बन जाता. अपनी छोटीछोटी आंखों में कितने बड़ेबड़े सपने संजो रखे थे उस ने उन सपनों को पूरा करने की सामर्थ्य भी उस में दिखाई दे रही थी पर जिंदगी के एक हादसे ने उस के सारे सपने चूरचूर कर अर्श से खदेड़ कर फर्श पर ऐसा ला पटका कि उस के जीवन की संभावनाओं को ही समाप्त कर दिया.
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