घर की तरफ जाते वक्त एक छोटे से पार्क में श्रीमद्भागवत गीता का पाठ चल रहा था. उस की आवाजें काफी दूर तक सुनाई दे रही थीं. करीब 3-4 दिन हुए होंगे, रोजाना वहां आतेजाते जो लोग दिखाई देते थे उन में अधिकतर महिलाएं और उन के साथ जाती युवतियां ही होती थीं. उन्हें देख कर यह पता लगाया जा सकता था कि वे मिडिल क्लास, लोअर मिडिल क्लास और लोअर क्लास की महिलाएं रही होंगी, जिन्हें शायद घर की जिम्मेदारियों के अलावा कुछ सोचनासमझना सिखाया नहीं जाता.
भक्ति मार्ग को उन के और उन के परिवार की सफलता के लिए आवश्यक पाठ की घुट्टी के रूप में पिला दिया जाता है, जिस के बाद वे महिलाएं अपने विवेक का सहारा लिए बिना धर्मांध हो कर इस तरह के धार्मिक समारोहों की सब से बड़ी प्रतिभागी बन जाती हैं, जिस का खुले रूप से फायदा उठाया जाता है. इन समारोहों में कथावाचक, धर्मगुरुओं और धर्मप्रचारक बने बाबाओं द्वारा.
सौफ्ट टारगेट हैं महिलाएं
कथावाचक, धर्मगुरु, धर्मप्रचारक कहे जाने वाले इन बाबाओं का एक बड़ा नंबर भारत में तैयार है जो 21वीं सदी में जी रहे भारत को 5,000 साल पुरानी परंपराओं की तरफ धकेलने में लगे हैं.
विश्व के देशों में विज्ञान मानव की फिजिकल (रोबोट) और वर्चुअल रैप्लिका तैयार करने में लगा है जबकि भारत में धर्मगुरु अध्यात्म का सहारा ले कर यूट्यूब और रील्स में प्रवचन करते हुए इस की हिंदू और सनातनी कही जाने वाली आबादी को पीछे धकेलने की साजिश में व्यस्त हैं. इस के लिए वे महिलाओं और युवतियों को टारगेट कर रहे हैं. उन्हें वे धर्म, परंपराओं, परिवार और स्त्री कर्तव्य के पाठ तोड़मरोड़ कर पढ़ा रहे हैं और उन का ब्रेनवाश कर रहे हैं. अपने इस कुटिल मकसद के लिए वे टीवी चैनलों, फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया का बखूबी फायदा उठा रहे हैं.
आप इन के यूट्यूब चैनल्स देखिए, अधिकतर थंबनेल महिलाओं और उन के कर्तव्यों को ले कर ही तैयार किए जाते हैं. महिलाएं ये न करें, महिलाएं वह न करें, ऐसा करेंगी तो घर में खुशहाली रहेगी, वैसा करेंगी तो धन का नाश होगा वगैरहवगैरह. महिलाओं को ये सौफ्ट टारगेट के रूप में इस्तेमाल करते हैं जबकि पुरुषों के लिए उन के पास गिनेचुने आदेश और सजेशंस ही होते हैं.
निराले कथावाचक
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