धर्म-धर्मांतरण और लव जिहाद का ट्रायंगल
DASTAKTIMES|December - 2022
सुप्रीम अदालत ने चेताया है कि यदि जबरन धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो 'बहुत मुश्किल स्थिति' पैदा होगी, क्योंकि वे राष्ट्र की सुरक्षा के साथ-साथ नागरिकों के धर्म और विवेक की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि कथित धर्मांतरण का यह मुद्दा, अगर सही और सत्य पाया जाता है तो यह एक बहुत ही गंभीर मामला है, जो अंततः राष्ट्र की सुरक्षा के साथ नागरिकों के धर्म और विवेक की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।
संजय
धर्म-धर्मांतरण और लव जिहाद का ट्रायंगल

हिंदुस्तान में लव जिहाद नासूर की तरह फैलता जा रहा है। यह बेहद शर्मनाक और पीड़ादायक है कि देश में प्रतिवर्ष लव जिहादियों के चंगुल में फंसकर सैकड़ों लड़कियों को अपनी जान की कुर्बानी देना पड़ती है या फिर नरक जैसा जीवन जीने को मजबूर हो जाती है। दुख की बात तो यह है कि देश में लव जिहाद की घटनाओं में कमी नहीं आ रही है। यह सब तब हो रहा है जबकि कई राज्यों में लव जिहाद के खिलाफ सख्त कानून बनाए जा चुके हैं। कड़ी सजा और जुर्माने का प्रावधान है। यह कहना गलत नहीं होगा कि लव जिहाद की घटनाएं काफी हद तक धर्म और धर्मांतरण से भी जुड़ी हैं। लव जिहाद का एंगिल सीधे तौर पर हिन्दू युवतियों और मुस्लिम युवाओं से जुड़ा मसला बनता जा रहा है। जहां मुस्लिम युवक अपना धर्म और नाम छिपाकर हिन्दू युवतियों को अपने प्रेम जाल में फंसाकर धर्मांतरण को बढ़ावा देने का कृत्य करते हैं। प्यार ऐसा 'रोग' होता है जिसे युवक-युवतियां जमाने से छिपाकर करती हैं। बस इसी बात का फायदा लव जेहादी उठाते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि लव जिहाद के खिलाफ कानून तो अपना काम करे ही, हम सबको भी अपनी किशोर उम्र की बेटियों को समय-समय पर लव जेहादियों के मंसूबों और लव जेहादी इस कृत्य को कैसे अंजाम देते हैं, इसके प्रति जागरूक करते रहना चाहिए। बेटियों से खुलकर बात करनी चाहिए। वह लव जेहादियों द्वारा नहीं छली जाएं, इसके लिए मां-बाप को उनके दोस्त बनकर रहना चाहिए जिससे वह कोई बात मां-बाप या घर वालों से नहीं छिपाए। लव जिहाद की गंभीरता का अंदाजा सुप्रीम कोर्ट की 14 नवंबर 2022 की उस टिप्पणी से लगाया जा सकता है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण को 'बहुत गंभीर' मुद्दा ने करार देते हुए केंद्र से कहा था कि वह इसे रोकने के लिए कदम उठाए और इस दिशा में गंभीर प्रयास करे। 

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कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
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बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।

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पीके अपनी पार्टी की रणनीति में हुए फेल
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