गुजरात से दिल्ली तक हर तरफ अरविंद केजरीवाल ही दो-दो हाथ करते नजर आ रहे हैं. हां, कांग्रेस अपनी भारत जोड़ो यात्रा में शिद्दत से जुटी हुई है पहले के मुकाबले थोड़ी गंभीरता और राहुल गांधी में भी महसूस की जा सकती है. हालांकि, ऐसी चीजों की वैलिडिटी तभी तक होती है जब तक कि राहुल गांधी गले मिल कर आंख मार देने जैसी कोई नयी हरकत न कर दें. गुजरात चुनाव की बात हो या फिर दिल्ली में हो रहे एमसीडी चुनाव की, कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारने में कोई कोताही भी नहीं बरती है, लेकिन लड़ाई के मोर्चे पर तो अरविंद केजरीवाल और उनके साथी ही चप्पे चप्पे पर नजर आ रहे हैं. हो सकता है, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का एक छोटा सा मकसद ये भी हो. हालिया चुनावों से कांग्रेस को दूर रखने की.
एमसीडी चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल 2020 के विधानसभा चुनावों की तरह ही संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अभी तक ये तो नहीं लगा है कि दिल्लीवासी फिर से उनको 'आई लव यू दिल्ली' बोलने का मौका देने वाले हैं. नतीजे जो भी हों, अरविंद केजरीवाल ने दिल्लीवालों को वैसी ही चुनौती दी है जैसे 2017 के एमसीडी चुनाव में दी थी. तब अरविंद केजरीवाल का कहना था कि अगर अपने बच्चों को डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां देनी है तो दिल्लीवाले बीजेपी को वोट दे दें, वरना आम आदमी पार्टी को मौका दें. जेल में बंद सत्येंद्र जैन का नया वीडियो आने के बाद अब आप नेता का कहना है कि एमसीडी चुनाव में जनता को ये तय करना है कि 'अरविंद केजरीवाल के दस काम चाहिये या बीजेपी के दस वीडियो.' बीजेपी नेताओं के भाषण और बयानों में भले ही ये लग रहा हो कि वो कांग्रेस को दुश्मन नंबर 1 समझ रही है, लेकिन जिस तरह से समान नागरिक संहिता पर जोर देखा जा रहा है निशाने पर तो अरविंद केजरीवाल ही हैं. हाल में आये केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कई इंटरव्यू देख कर तो यही लगता है जैसे सारा जोर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर ही हो. और ये भी एक इंटरव्यू में सवालों के जवाब से ही मालूम होता है कि असल में ये अरविंद केजरीवाल के हिंदुत्व की राजनीति की तरफ बढ़ते कदमों में राजनीतिक बेड़ियां पहनाने की ही कोशिश है - और गुजरात चुनावों के लिए बीजेपी के संकल्प पत्र ने तो इस पर मुहर ही लगा दी है.
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