अल्पसंख्यकवाद से मुक्ति पर विचार किया जाना चाहिए !
Gambhir Samachar|December 01, 2022
भारत एक विशाल देश है. यहां विभिन्न समुदाय के लोग निवास करते हैं. उनकी भिन्न-भिन्न संस्कृतियां हैं, परन्तु सबकी नागरिकता एक ही है. सब भारतीय हैं.
डॉ. सौरभ मालवीय
अल्पसंख्यकवाद से मुक्ति पर विचार किया जाना चाहिए !

कोई भी देश तभी उन्नति के शिखर पर पहुंचता है जब उसके निवासी उन्नति करते हैं. यदि कोई समुदाय मुख्यधारा के अन्य समुदायों से पिछड़ जाए, तो वह देश संपूर्ण रूप से उन्नति नहीं कर सकता. इसलिए आवश्यक है कि देश के सभी समुदाय उन्नति करें. आज देश में एक बार फिर से अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का विषय चर्चा में है.

उल्लेखनीय है कि 'अल्पसंख्यक' का तात्पर्य केवल मुस्लिम समुदाय से नहीं है. देश के संविधान में 'अल्पसंख्यक' शब्द की परिकल्पना धार्मिक, भाषाई एवं सांस्कृतिक रूप से भिन्न वर्गों के लिए की गई है. यह दुखद है कि कांग्रेस द्वारा इसका उपयोग अपने स्वार्थ के लिए किया गया, ताकि उसका वोट बैंक बना रहे कांग्रेस द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 बनाया गया. इसमें देश की मुख्यधारा से पृथक से वंचित धार्मिक समुदायों की स्थिति के कारणों के मूल्यांकन की आवश्यकता पर बल दिया गया. इस अधिनियम के आधार पर मई 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया.

किन्तु राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम-1992 में 'धार्मिक अल्पसंख्यक की परिभाषा नहीं दी गई है. कौन सा समुदाय अल्पसंख्यक है, इसका निर्णय करने का सारा दायित्व केंद्र सरकार को सौंप दिया गया. इसके पश्चात कांग्रेस सरकार ने अक्टूबर 1993 में पांच धार्मिक समुदायों को अल्पसंख्यकों के रूप में अधिसूचित किया, जिसमें मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध एवं पारसी सम्मिलित हैं. इसके पश्चात जैन समुदाय द्वारा उसे भी अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने की मांग की जाने लगी. तब सरकार ने राष्ट्रीय धार्मिक अधिनियम- 2014 में एक संशोधन करके जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यकों की सूची में सम्मिलित कर दिया.

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