अपने ही वजन तले धंसता जोशीमठ किसी नक्शे पर दिखता 'एक और' बिंदु भर नहीं है. उत्तराखंड के चमोली जिले में 6,000 फुट की ऊंचाई पर बसा सुंदर-सा पहाड़ी शहर यह पवित्र बद्रीनाथ मंदिर, हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा, अनमोल विश्व धरोहर स्थल फूलों की घाटी, स्नो स्पोर्ट्स रिजॉर्ट औली और आसपास के पहाड़ों में काफी ऊंचाई वाले ट्रेकिंग मार्गों का प्रवेश द्वार है. इस मध्य हिमालयी क्षेत्र में भारत-चीन सीमा की रक्षा करने वाली भारतीय सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) के ब्रिगेड मुख्यालय होने के कारण इसका सामरिक महत्व भी है.
वैसे जोशीमठ में कुछ भी अचानक नहीं हुआ है. गढ़वाल की पहाड़ियों में बड़ी संख्या में कस्बे और गांव लगातार भूस्खलन और कृषि भूमि के साथ-साथ आवासीय भवनों के धंसाव का सामना करते रहे हैं. क्यों ? मानव जाति की मूर्खता उजागर करने वाले इस सवाल को यहीं छोड़ दें. जोशीमठ में उभरते संकट पर 2021 में दो सहयोगी भूवैज्ञानिकों के साथ एक अध्ययन करने वाले, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में कार्यरत भूविज्ञानी डॉ. एस. पी. सती बताते हैं, "हिमालय दुनिया की सबसे नई पर्वत श्रृंखला है. इसके निर्माण की प्रक्रिया अभी भी जारी है. और भूगर्भीय रूप से उत्तराखंड अत्यधिक सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र में स्थित है. ढेरों पनबिजली परियोजनाओं, बारहमासी चार धाम राजमार्ग जैसी बेलगाम निर्माण गतिविधियों और ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए सुरंग बनाने में विस्फोटकों के बड़े पैमाने पर उपयोग ने क्षेत्र की पहले से ही नाजुक हालत को और बिगाड़ दिया है." पिछले दो साल से इलाके के बाशिंदे जमीन धंसने और मकानों में दरारें आने की बढ़ती घटनाओं की जानकारी प्रशासन को दे रहे थे. करीब 14 महीने पहले 'जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति' बनाई गई. आवाजें उठने पर राज्य सरकार ने भूगर्भीय और भू-तकनीकी जांच के लिए एक विशेषज्ञ दल गठित किया, लेकिन उसकी चेतावनी भी अनसुनी रह गई.
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