उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की नरैनी तहसील के गुमानगंज गांव की 65 वर्षीया शकुंतला देवी कई वर्षों से सांस की गंभीर बीमारी क्रॉनिक ऑब्सट्रेक्टिीव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से पीड़ित थीं. हर वर्ष ठंड बढ़ने पर इनकी बीमारी भी बढ़ जाती थी. इस बार भी ऐसा ही हुआ. जनवरी के पहले हफ्ते में जैसे ही सर्दी ने जोर पकड़ा, उनकी बीमारी ने घातक रूप ले लिया. 8 जनवरी की शाम से उन्हें सांस लेने में बहुत तकलीफ होने लगी. परिजन उन्हें स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) लेकर गए तो डॉक्टर ने उन्हें वेंटिलेटर की जरूरत बताकर दूसरे बड़े अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. परिजन उन्हें बांदा मेडिकल कॉलेज लेकर पहुंचे, पर वहां वेंटिलेटर न होने की बात कहकर भर्ती नहीं किया गया. शकुंतला के बेटे रामराज ने बांदा के जिला अस्पताल में अपने फार्मासिस्ट मित्र से संपर्क किया तो पता चला कि वहां वेंटिलेटर तो हैं लेकिन वे चालू हालत में नहीं हैं. वेंटिलेटर का जुगाड़ न होने से शकुंतला की तबियत बिगड़ती जा रही थी. अंततः रामराज ने पैसों का इंतजाम किया और मां को प्रयागराज के बारा इलाके में एक निजी अस्पताल के आइसीयू में भर्ती कराया. 12 दिन के इलाज के बाद शकुंतला अस्पताल से डिस्चार्ज हो गईं, पर परिवार पर डेढ़ लाख रुपए से ज्यादा का कर्ज चढ़ गया.
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यूबी की किंगफिशर ने 1990 के दशक में बीयर को कूल बना दिया. तब से घरेलू अल्कोहल उद्योग के जोशीले दिन कभी थमे नहीं
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घर हो या कोई भी नुक्कड़-चौराहा, हर तरफ फिल्मी गानों की बादशाहत कायम थी. उसके अलावा जैसे कुछ सुनाई ही नहीं पड़ता था. तभी भारतीय ब्रिटिश गायकसंगीतकार बिट्टू ने हमें नाजिया से रू-ब-रू कराया, जिनकी आवाज ने भारतीयों को दीवाना बना दिया. सच में लोग डिस्को के दीवाने हो गए. इसके साथ एक पूरी शैली ने जन्म लिया
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विश्वनाथन आनंद अचानक ही सामने आए और दुनिया फतह कर ली. गुकेश के साथ 2024 में भारत को मिली उपलब्धि उसी विरासत का हिस्सा है
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सामूहिक शर्म से लेकर राष्ट्रीय गौरव तक, खुले में शौच का चलन खत्म करने के देश के सफर में मजबूत सियासी इच्छाशक्ति और नेतृत्व के साथ-साथ समुदाय, कॉर्पोरेट और सेलेब्रिटी के मिलकर काम करने की दास्तान शामिल
जब मौन बन गया उद्घोष
एक पनबिजली परियोजना के विरोध में पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कवियों और पत्रकारों ने मिलकर जन जागरुकता अभियान चलाया और भारत के अब बचीखुची उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में से एक, केरल की साइलेंट वैली को बचाने में कामयाब रहे।
बताने को मजबूर हुए बाबू
जमीनी स्तर पर संघर्ष से जन्मे इस ऐतिहासिक कानून ने भारत में लाखों लोगों के हाथों में सूचना का हथियार थमाकर गवर्नेस को न सिर्फ बदल दिया, बल्कि अधिकारों की जवाबदेही भी तय करने में बड़ी भूमिका निभाई