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उद्धव ठाकरे को और तगड़ा झटका देते हुए आयोग ने फैसला सुनाया कि उद्धव 'शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ' नाम को इस महीने के आखिर में होने वाले दो विधानसभा उपचुनावों तक ही बरकरार रख सकते हैं. 'मशाल' सिंबल के लिए भी ऐसा ही कहा गया, जिसे चुनाव आयोग ने उन्हें 10 अक्तूबर, 2022 को आवंटित किया था.
इसका मतलब यह है कि उद्धव को अपनी पार्टी के लिए नए नाम और चुनाव चिह्न की तलाश करनी पड़ सकती है. उनके पास पार्टी के 56 विधायकों में से केवल 16 और 19 लोकसभा सांसदों में से छह ही बचे हैं. वहीं, भाजपा के समर्थन से महाराष्ट्र में सरकार की अगुआई कर रहे शिंदे अब 'आधिकारिक' शिवसेना के कर्ताधर्ता हैं.
आयोग ने विधायी बहुमत को देखते हुए शिंदे को वह सिंबल आवंटित किया. मुख्यमंत्री शिंदे को 67 विधायकों और एमएलसी में से 40 और 22 लोकसभा तथा राज्यसभा सांसदों में से 13 का स्पष्ट समर्थन हासिल है.
उम्मीद के मुताबिक, आयोग के फैसले को लेकर उद्धव कैंप में नाराजगी है. उद्धव ने आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाते उसे भंग करने तक की मांग कर डाली. राज्यसभा सांसद संजय राउत ने उस पर आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी सिंबल और नाम को करीब 2,000 करोड़ रुपए में सौदा करके 'बेच' दिया गया. उद्धव गुट अब सुप्रीम कोर्ट चला गया है जो पहले से महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन की वैधता को लेकर कई याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है. वे सवाल कर रहे हैं कि मामला अभी जब विचाराधीन है तो आयोग फैसला कैसे ले सकता है.
आयोग का फैसला ऐसे वक्त में आया है जब शिंदे - भाजपा सरकार कस्बा पेठ और चिंचवाड़ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) के खिलाफ प्रतिष्ठा की जंग लड़ रही है. सत्तासीन भाजपा के खिलाफ एमवीए की ओर से दोनों जगहों पर क्रमश: कांग्रेस और एनसीपी चुनावी मुकाबले में हैं. दोनों पुणे बेल्ट में हैं जहां सेना का पारंपरिक मुंबइया प्रभाव बिखरा हुआ है, खासकर कस्बा पेठ में जो शहर के भीतर है.
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उथल-पुथल का आलम
सामाजिक-राजनैतिक सुधारों के लिए सरकार को मजबूत समर्थन मिल रहा मगर लोकतंत्र, धार्मिक ध्रुवीकरण और महिला सुरक्षा को लेकर चल रही खदबदाहट से इससे जुड़ी चिंताएं उजागर