मराठा आरक्षण की दुविधा
India Today Hindi|November 22, 2023
महाराष्ट्र भी जाति आधारित सर्वेक्षण का सियासी सुर अलापने में पीछे नहीं है, खासकर उपमुख्यमंत्रियों अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस के रुख को देखकर तो यही लगता है. अक्तूबर में बिहार में जाति गणना के नतीजे सार्वजनिक किए जाने और महाराष्ट्र में मराठाओं को जाति आधारित कोटा के लिए विभिन्न समूहों के विरोध प्रदर्शन के बीच राज्य में यह मांग जोर पकड़ने लगी है.
धवल कुलकर्णी
मराठा आरक्षण की दुविधा

अजित पवार ने पिछले महीने कहा था," (मुख्यमंत्री) नीतीश कुमार ने बिहार में यह किया, और मुझे लगता है कि यहां भी जाति आधारित गणना होनी चाहिए. हमें महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी, खानाबदोश समुदायों, अल्पसंख्यकों और यहां तक कि खुली श्रेणी में आने वाले लोगों की संख्या पता होनी चाहिए." फडणवीस ने थोड़ा 44 अधिक सतर्कता बरतते हुए कहा कि राज्य सरकार इस विचार के खिलाफ नहीं है लेकिन सवाल यह है कि इसे कैसे किया जाए ताकि 'यह सुनिश्चित हो सके कि बिहार जैसी कोई समस्या नहीं होगी..." एनसीपी दिग्गज शरद पवार और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले भी जाति गणना के पक्षधर हैं.

जाति गणना का मुद्दा ऐसे समय जोर पकड़ रहा है जब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार मराठाओं के आरक्षण को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों से किसी तरह अस्थायी राहत पाने में कामयाब रही है. आमरण अनशन पर बैठे एक्टिविस्ट मनोज जारांगेपाटिल को आखिरकार भूख हड़ताल खत्म करने पर राजी कर लिया गया. जारांगे- पाटिल चाहते हैं कि अगड़ी जाति के क्षत्रिय मराठाओं को कुनबियों (कृषक) में शामिल किया जाए ताकि वे ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) कोटा के पात्र हो सकें. आवाजें तो इसे लेकर भी उठ रही हैं कि मराठा जैसे कृषक समुदायों की समस्या आरक्षण की मांग से कहीं आगे तक जाती हैं. खेती लाभकारी व्यवसाय न रहने और उच्च शिक्षा पहुंच से बाहर होने ने उन्हें गहरा झटका दिया है, और इसने निजी क्षेत्र में उनकी संभावनाओं को भी लगभग खत्म कर दिया है. उनका तर्क है कि इसीलिए सरकारी नौकरियों के लिए मारामारी है.

हालांकि, मराठाओं की कोटे की मांग का कुनबियों और व्यापक ओबीसी समूह ने कड़ा विरोध किया है. इस समुदाय का कहना है कि राज्य की राजनीति और राजनैतिक अर्थव्यवस्था दोनों पर मराठाओं का खासा नियंत्रण है. वहीं, महाराष्ट्र में ओबीसी की एक उप- श्रेणी खानाबदोश जनजाति (एनटी) में आने वाले धनगर (चरवाहे) जैसे समूह अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल होना चाहते हैं.

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