अजित पवार ने पिछले महीने कहा था," (मुख्यमंत्री) नीतीश कुमार ने बिहार में यह किया, और मुझे लगता है कि यहां भी जाति आधारित गणना होनी चाहिए. हमें महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी, खानाबदोश समुदायों, अल्पसंख्यकों और यहां तक कि खुली श्रेणी में आने वाले लोगों की संख्या पता होनी चाहिए." फडणवीस ने थोड़ा 44 अधिक सतर्कता बरतते हुए कहा कि राज्य सरकार इस विचार के खिलाफ नहीं है लेकिन सवाल यह है कि इसे कैसे किया जाए ताकि 'यह सुनिश्चित हो सके कि बिहार जैसी कोई समस्या नहीं होगी..." एनसीपी दिग्गज शरद पवार और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले भी जाति गणना के पक्षधर हैं.
जाति गणना का मुद्दा ऐसे समय जोर पकड़ रहा है जब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार मराठाओं के आरक्षण को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों से किसी तरह अस्थायी राहत पाने में कामयाब रही है. आमरण अनशन पर बैठे एक्टिविस्ट मनोज जारांगेपाटिल को आखिरकार भूख हड़ताल खत्म करने पर राजी कर लिया गया. जारांगे- पाटिल चाहते हैं कि अगड़ी जाति के क्षत्रिय मराठाओं को कुनबियों (कृषक) में शामिल किया जाए ताकि वे ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) कोटा के पात्र हो सकें. आवाजें तो इसे लेकर भी उठ रही हैं कि मराठा जैसे कृषक समुदायों की समस्या आरक्षण की मांग से कहीं आगे तक जाती हैं. खेती लाभकारी व्यवसाय न रहने और उच्च शिक्षा पहुंच से बाहर होने ने उन्हें गहरा झटका दिया है, और इसने निजी क्षेत्र में उनकी संभावनाओं को भी लगभग खत्म कर दिया है. उनका तर्क है कि इसीलिए सरकारी नौकरियों के लिए मारामारी है.
हालांकि, मराठाओं की कोटे की मांग का कुनबियों और व्यापक ओबीसी समूह ने कड़ा विरोध किया है. इस समुदाय का कहना है कि राज्य की राजनीति और राजनैतिक अर्थव्यवस्था दोनों पर मराठाओं का खासा नियंत्रण है. वहीं, महाराष्ट्र में ओबीसी की एक उप- श्रेणी खानाबदोश जनजाति (एनटी) में आने वाले धनगर (चरवाहे) जैसे समूह अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल होना चाहते हैं.
This story is from the November 22, 2023 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the November 22, 2023 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
फिर उसी बुलंदी पर
वनडे विश्व कप के फाइनल में चौंकाने वाली हार के महज सात महीने बाद भारत ने जबरदस्त वापसी की और जून 2024 में टी20 विश्व कप जीतकर क्रिकेट की बुलंदियों एक को छुआ
आखिरकार आया अस्तित्व में
यह एक भूभाग पर हिंदू समाज के स्वामित्व का प्रतीक था. इसके निर्माण से भक्तों को एक तरह की परिपूर्णता और उल्लास की अनुभूति हुई. अलग-अलग लोगों के लिए राम मंदिर के अलग-अलग अर्थ रहे हैं और उसमें आधुनिक भारत की सभी तरह की जटिलताओं- पेचीदगियों की झलक देखी जा सकती है
बंगाल विजयनी
केवल आर. जी. कर और संदेशखाली घटनाक्रमों को गिनेंगे तो लगेगा कि 2024 ममता बनर्जी के लिए सबसे मुश्किल साल था, मगर चुनावी नतीजों का संदेश तो कुछ और ही
सत्ता पर काबिज रहने की कला
सियासी माहौल कब किस करवट बैठने के लिए मुफीद है, यह नीतीश कुमार से बेहतर शायद ही कोई जानता हो. इसी क्षमता ने उन्हें मोदी 3.0 में एक मजबूत स्तंभ के तौर पर स्थापित किया
शेरदिल सियासतदां
विधानसभा चुनाव में शानदार जीत ने न केवल उनकी पार्टी बल्कि कश्मीर का भी लंबा सियासी इंतजार खत्म कराया. मगर उमर अब्दुल्ला को कई कड़ी परीक्षाओं से गुजरना पड़ रहा—उन्हें व की बड़ी उम्मीदों पर खरा उतरना है, तो जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस मिलने तक केंद्र से जूझना भी है
शूटिंग क्वीन
मनु भाकर ने पेरिस 2024 ओलंपिक में बदलाव की शानदार पटकथा लिखी. अटूट इच्छाशक्ति से अतीत की निराशा को पीछे छोड़कर उन्होंने अपना भाग्य गढ़ा
नया सितारा पॉप का
दुनियाभर के विभिन्न मंचों पर धूम मचाने से लेकर भाषाई बंधन तोड़ने और पंजाबी गौरव का परचम फिर बुलंद करने तक, दिलजीत दोसांझ ने साबित कर दिया कि एक सच्चा कलाकार किसी भी सीमा और शैली से परे होता है
बातें दिल्ली के व्यंजनों की
एकेडमिक, इतिहासकार और देश के सबसे पसंदीदा खानपान लेखकों में से एक पुष्पेश पंत की ताजा किताब फ्रॉम द किंग्ज टेबल टु स्ट्रीट फूड: अ फूड हिस्ट्री ऑफ देहली में है राजधानी के स्वाद के धरोहर की गहरी पड़ताल
दो ने मिलकर बदला खेल
हेमंत और कल्पना सोरेन ने झारखंड के राजनैतिक खेल को पलटते हुए अपनी लगभग हार की स्थिति को एक असाधारण वापसी में बदल डाला
बवंडर के बीच बगूला
आप के मुखिया के लिए यह खासे नाटकीय घटनाक्रम वाला साल रहा, जिसमें उनका जेल जाना भी शामिल था. अब जब पार्टी लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए दिल्ली पर राज करने की निर्णायक लड़ाई लड़ रही, सारी नजरें उन्हीं पर टिकीं