पंजाब में सतलज-व्यास के संगम से निकलकर भारत-पाकिस्तान सरहद के अंतिम छोर तक पहुंचने वाली इंदिरा गांधी नहर को थार की जीवदायिनी माना जाता है, मगर एक कड़वा सच यह भी है कि इस नहर के कारण जिस तरह से खेतों और गांवों में समृद्धि आई है, वहीं नहर के आस-पास के क्षेत्रों में नशे की फसल भी खूब लहलहा रही है.
क्या आम आदमी और क्या पुलिस प्रशासन ! जिससे भी बात कीजिए, इसकी एक के बाद एक, बस परतें ही उधड़ती हैं. आइपीएस राजीव पचार ने पिछले साल हनुमानगढ़ जिले के पुलिस अधीक्षक रहते हुए नशे के कारोबार के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया था. अभी वे इंटेलिजेंस महकमें के डीआइजी हैं. वे कहते हैं, “थार के जिन भी इलाकों में नहर का पानी आया है वहां हेरोइन, स्मैक और कोकीन जैसा खतरनाक नशा भी पहुंचा है. जिन इलाकों में अभी नहर का पानी नहीं पहुंच पाया है, वहां नशा अपनी जड़ नहीं जमा पाया है."
सीमावर्ती और नहरी क्षेत्रों में बॉर्डर पार से आई नशे की खेप पचार के इस तर्क की पुष्टि करती है. राजस्थान पुलिस ने रायसिंहनगर, अनूपगढ़, करणपुर, गजसिंहपुर, केशरीसिंहपुर, रावला, घड़साना, खाजूवाला, मोहनगढ़, बाखासर, गिराब, बिजराड जैसे इलाकों में पिछले तीन साल में 300 किलो से ज्यादा हेरोइन पकड़ी है. इस दौरान गंगानगर और अनूपगढ़ जिलों में 170 किलोग्राम, जैसमलेर, बाड़मेर और बीकानेर जिलों में 130 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी गई. पिछले तीन साल में इन जिलों में पकड़ी गई अफीम की मात्रा 5,000 किलो से ज्यादा है. पिछले तीन साल में बीएसएफ ने भी सीमावर्ती क्षेत्रों में 180 किलोग्राम से ज्यादा हेरोइन बरामद की है.
हनुमानगढ़ जिले की पीलीबंगा तहसील के गोलूवाला गांव के अनुराग बासिड़ा कहते हैं, "नशा यहां नस-नस में फैल चुका है. नहर के आस-पास के इलाकों में स्मैक, हेरोइन चिट्ठा बिकता है, वहीं नहर के दूसरी तरफ मेडिसिन ड्रग्स का नशा. पिछले दिनों पुलिस की पड़ताल में गोलूवाला गांव में ही 150 से ज्यादा युवा हेरोइन, स्मैक जैसे नशे के आदी पाए गए."
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