![नेताजी...नहीं, चुनाव लड़ेंगे बेटीजी-बेटाजी](https://cdn.magzter.com/India Today Hindi/1714981267/articles/Vxwx0U6mc1714992842463/1714993130481.jpg)
समस्तीपुर शहर के बीचोबीच हरी दीवारों और एसबेस्टस की छत वाले एक छोटे से मकान कर्पूरी आश्रम में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का जिला कार्यालय है. 27 अप्रैल की दोपहर इसी में 8-10 कार्यकर्ताओं की बैठकी जमी हुई थी. जिक्र चला नेताओं के बेटे-बेटियों के चुनाव लड़ने का. बातों ही बातों में कार्यकर्ता मनोरंजन प्रसाद यादव के मुंह से निकल गया, "किसी एक पार्टी का नहीं, सबका यही हाल है. कार्यकर्ता लोग पांच साल दरियै बिछाता रह जाता है और लीडर बम्बई से लाकर कंडीडेट उतार देते हैं. कार्यकर्ता को कोई पूछ नहीं करता, ऊ इलक्सन लड़े भी तो कैसे लड़े. कम से कम पांच करोड़ त नगदी चाही ना, पॉकिट में!"
मनोरंजन का इशारा समस्तीपुर लोकसभा सीट की तरफ था. वहां इस बार दोनों प्रमुख धड़ों से दो बड़े राजनेताओं के बच्चे चुनाव में हैं. एनडीए की तरफ से लोकतांत्रिक जनशक्ति पार्टी (लोजपा रामविलास) के टिकट पर शांभवी चौधरी चुनाव लड़ रही हैं, जो जनता दल यूनाइटेड (जद यू) नेता अशोक चौधरी की बेटी हैं. वहीं, इंडिया गठबंधन की तरफ से कांग्रेस के सन्नी हजारी मैदान में हैं, जो जद (यू) केही महेश्वर हजारी के बेटे हैं. दिलचस्प है कि दोनों संतानों ने नॉमिनेशन से चंद रोज पहले ही अपनी-अपनी पार्टियों की मेंबरशिप ली है. इससे पहले वे किसी राजनैतिक दल में नहीं थे. ऐन चुनाव के वक्त इधर जॉइनिंग, उधर टिकट हाथ में.
ये दोनों कोई इकलौती मिसाल नहीं हैं, जो मां-बाप की सियासी विरासत की वजह से चुनाव में उतरे हैं. बिहार में इस बार कम से कम छह उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्हें माता-पिता की वजह से पहली बार बिना किसी खास अनुभव के बड़े गठबंधनों से लोकसभा का टिकट मिला है. लालू प्रसाद यादव की दूसरी संतान रोहिणी आचार्य भी इनमें शुमार हैं. उन्हें राजद ने उस छपरा लोकसभा सीट से टिकट दिया है, जहां पहले लालू खुद चुनाव लड़े थे. रोहिणी ने पिता को अपनी किडनी डोनेट की है. लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती 2014 से ही पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से चुनाव लड़ती रही हैं और इस बार भी मैदान में हैं.
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सूरत बदलने का इंतजार
यह ऐसी योजना थी जैसे ताजा कटा हुआ चमकता नग हो. पांच साल पहले सूरत डायमंड बोर्स (एसडीबी) को मुंबई बढ़ती भीड़ और लागत वृद्धि का एकदम सटीक विकल्प माना गया था. मुंबई, जहां भारत के अधिकांश हीरा व्यापारी हैं, की टक्कर में हीरा कारोबारियों के लिए शानदार, सस्ते और बड़े ऑफिस, चौड़ी सड़कें, उन्नत हवाई अड्डे के साथ योजनाबद्ध अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय हवाई संपर्क की योजना बनाई गई थी. इसमें सोने में सुहागा प्रस्तावित बुलेट ट्रेन थी जो महज दो घंटे में सूरत से मुंबई बांद्रा कुर्ला कांप्लेक्स तक पहुंचा देती.