मौन मतदाता क्रांति

यह बेहद छोटा-सा आंकड़ा, महज 0.16 फीसद, देखने में बहुत मामूली लग सकता है लेकिन 2019 के आम चुनाव की इसने एक नई इबारत लिख डाली थी. उस वर्ष देश के संसदीय इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब मतदान में हिस्सेदारी के मामले में महिलाओं (67.18 फीसद) ने पुरुषों (67.02 फीसद) को पीछे छोड़ दिया. स्त्री-पुरुष अंतर में उलटफेर की इस मौन क्रांति के साथ भारतीय महिलाओं ने देश के सियासी परिदृश्य में एक खास दर्जा हासिल कर लिया. तबसे उन्हें मिल रही अहमियत का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है. एसबीआई रिसर्च के मुताबिक, पंजीकृत महिला मतदाताओं की संख्या 7.5 फीसद बढ़कर 2019 43.8 करोड़ के मुकाबले अब 47.1 करोड़ हो गई है, जो पुरुषों के मुकाबले पांच फीसद अधिक है. वहीं, 85 लाख महिलाएं ऐसी हैं जो 2024 के चुनाव पहली बार वोट डाल सकेंगी. मतदाताओं का अनुपात भी 2019 में प्रति 1000 पुरुषों पर 926 महिलाओं से बढ़कर इस बार 948 हो गया है. 12 राज्य ऐसे हैं, जहां महिला मतदाताओं का अनुपात या तो पुरुष से ज्यादा है या फिर बराबर है, जबकि 2019 में यह आंकड़ा आठ था.
देशभर में शायद ही कोई ऐसी जगह बची हो जहां महिलाओं ने अपने वोट की ताकत का एहसास न कराया हो. न केवल विधानसभा चुनावों में महिला मतदाताओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है, बल्कि प्रतिष्ठित सर्वेक्षण एजेंसी एक्सिस - माई इंडिया का विश्लेषण तो बताता है कि 2014 और 2019 के चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का सियासी दबदबा बढ़ाने में उनकी अहम भूमिका रही. दरअसल, महिला मतदाता सत्ताधारी दल के लिए रीढ़ की तरह बन गई हैं. एजेंसी ने पाया कि 2019 में 44 फीसद पुरुषों की तुलना में 46 फीसद महिलाओं ने भाजपा को वोट दिया.
This story is from the 22 May, 2024 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the 22 May, 2024 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In

सामने खड़ा हिमालय-सा खतरा
चीन की विशालकाय ब्रह्मपुत्र बांध परियोजना ने भारत के लिए बजाई खतरे की घंटी. इसने जल सुरक्षा, पर्यावरण पर पड़ने वाले असर और इस अति महत्वपूर्ण नदी के ऊपरी हिस्से पर बीजिंग के नियंत्रण को लेकर भी चिंता बढ़ाई

न्यायपालिका पर धुध
दिल्ली हाइकोर्ट के एक वरिष्ठ न्यायाधीश के आवास पर एक दिन देर रात को लगी आग की लपटें देश में कहीं ज्यादा तूफान उठा रही हैं. न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास के आउट हाउस में 14 मार्च की रात करीब 11.30 बजे आग लग गई. उस समय न्यायमूर्ति वर्मा और उनकी पत्नी भोपाल में थे.

मान की बदली चाल
बीस मार्च की दरम्यानी रात पंजाब पुलिस शंभू (पटियाला-अंबाला राजमार्ग पर) और खनौरी (संगरूरजींद सीमा) बॉर्डर के किसान यूनियन के विरोध स्थलों पर टूट पड़ी, जहां फरवरी 2024 से प्रदर्शन चल रहे थे.

जातिवाद की दीवार टूटी
संताना दास की पूरी जिंदगी पूर्वी बर्धमान जिले के कटवा उप-मंडल स्थित गिधाग्राम स्थित शिव मंदिर में पूजा करने जाने वालों को एक सुरक्षित दूरी से देखने में बीत गई.

अतीत की कब्र खोदकर होगा भविष्य का निर्माण ?
औरंगजेब की कब्र ध्वस्त करने की मांग ऐसी ड्रामा सीरीज की ताजा कड़ी की तरह है, जिसके कुछ एपिसोड प्रसारित हो चुके हैं और शेष अभी आने बाकी हैं.

और अब अलवर ने भी भरी उड़ान
एक जुनूनी रंगकर्मी की जिद ने अलवर जैसे गंवई चौहद्दी वाले शहर को राष्ट्रीय रंगमंच के नक्शे पर ला दिया. राजस्थान के हर जिले में रंगोत्सव अब उनकी मंशा

यहां भी नफरत के रंग!
मरुस्थली राज्य राजस्थान की अपने पड़ोसी राज्यों की तुलना में कुछ हद तक शांत छवि रही है, लेकिन अब यह साख तेजी से धूल-धूसरित होती जा रही है.

अनूठे खेल का बिहार अध्याय
बि हार की राजधानी पटना के पाटलिपुत्र इंडोर स्टेडियम में रंग-बिरंगी रोशनी के बीच हाल ही एक अनूठे खेल का वर्ल्ड कप खेला गया. 2011 में इस खेल के वर्ल्ड कप के आयोजन की शुरुआत हुई थी.

इतिहास बना हथियार
औरंगजेब की विवादास्पद विरासत पर महाराष्ट्र में भड़की हिंसा और उग्र बहसों की लपटें तो हिंदुत्व के पैरोकारों की अपनी धारणा के मुताबिक इतिहास की गलतियों को दुरुस्त करने की कोशिश की ताजा मिसाल भर

भ्रष्टाचार का निवेश!
'इन्वेस्ट यूपी' के सीईओ रहे आइएएस अभिषेक प्रकाश के वसूली प्रकरण ने यूपी सरकार की कराई किरकिरी. निलंबित हुए अफसरों के बाद में बहाल होने के चलन को लेकर भी योगी सरकार पर सवाल