रामनारायण थाकन, 51 वर्ष बसेड़ी (जयपुर), राजस्थान
सैटेलाइट या हवाई तस्वीरों में इन गांवों की जमीन सफेद चादर से ढकी नजर आती है. दरअसल, यह सफेद चादर खेतों में बने उन पॉलीहाउस की है जो इन गांवों की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल चुके हैं. बसेड़ी और गुढ़ा कुमावतान गांवों में 450 से ज्यादा पॉलीहाउस बने हैं. इस तकनीक से खेती के कारण इन दोनों गांवों में 50 से ज्यादा किसान करोड़पति और ज्यादातर किसान लखपति बन चुके हैं, खेतों में बड़े-बड़े बंगले और उनके बाहर खड़ी लग्जरी गाड़ियां देखकर इन किसानों की संपन्नता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. पॉलीहाउस की यह तकनीक इन गांवों ने इज्राएल से अपनाई है जिसके कारण इस इलाके को मिनी इज्राएल के नाम से भी जाना जाता है.
बसेड़ी गांव के रामनारायण थान और गुढ़ा कुमावतान गांव के खेमाराम महरिया ने 2011-12 में राजस्थान सरकार के अधिकारियों के साथ इज्राएल का दौरा किया और वहां कम पानी में होने वाली पॉलीहाउस तकनीक से खेती देखकर इसे अपने गांव में साकार करने का मन बनाया. इज्राएल से लौटते ही दोनों ने सरकारी अनुदान से अपने खेतों में 4,000-4,000 वर्ग मीटर में पॉलीहाउस बनाए रामनारायण बताते हैं, "सरकारी अनुदान के लिए फाइल लेकर जब मैं जयपुर में कृषि विभाग के दफ्तर पहुंचा तो अफसर ने मेरे कपड़ों को देखकर कहा कि आप तो सरपंच का चुनाव लड़ो, पॉलीहाउस बनाकर क्या करोगे ? तब मैंने कहा कि अभी तो मैं एक पॉलीहाउस बनाने का ख्वाब लेकर आया था, मगर आपकी बातें सुनकर अब मैं दो पॉलीहाउस बनाऊंगा. "पॉलीहाउस बनने के बाद उसमें विदेशी किस्म के खीरे की भरपूर पैदावार हुई तब उसी अफसर ने रामनारायण के खेत में पहुंचकर उन्हें बधाई दी.
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