भारत-अमेरिका एटमी समझौता-2008
भारत-अमेरिका असैन्य एटमी समझौता भारत के कूटनीतिक और रणनीतिक इतिहास का निर्णायक क्षण था. इस पर 2008 में दस्तखत हुए. इसे 123 समझौते के नाम से भी जाना जाता है. इसने न केवल भारत-अमेरिका रिश्तों में नए युग का सूत्रपात किया बल्कि एटमी अप्रसार के वैश्विक मानदंडों और भारत की ऊर्जा तथा प्रौद्योगिकीय महत्वाकांक्षाओं के लिए इसके गहरे निहितार्थ भी थे. इसने अंतरराष्ट्रीय एटमी व्यापार से भारत के अलगाव को खत्म किया और 1974 तथा 1998 में किए गए एटमी परीक्षणों के बाद उस पर थोपी गई वैश्विक पाबंदियों को हटाने की भी कोशिश की. प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने एटमी अप्रसार संधि (एनपीटी) को पक्षपातपूर्ण बताकर दस्तखत करने से मना कर दिया था. मगर भारत ने अप्रसार का बेदाग रिकॉर्ड कायम रखा और मजबूत स्वदेशी एटमी कार्यक्रम विकसित किया.
वहीं, 2000 के दशक के शुरुआती वर्षों में ज्यों-ज्यों भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ी, ऊर्जा की मांग आसमान छूने लगी. इससे निबटने के लिए एटमी ऊर्जा एक समाधान के रूप में सामने आई पर यूरेनियम की कमी बड़ी अड़चन थी. राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश की अगुआई में अमेरिका ने आतंकवाद और चीन के उभार समेत वैश्विक चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए साझेदार के तौर पर भारत की रणनीतिक क्षमता को पहचाना. ऐसे में एटमी समझौता भारत-अमेरिका की रणनीतिक भागीदारी की आधारशिला बन गया.
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