
हमें नौकरी के लिए क्या इसी जगह अर्जी देनी है?” उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाके में दो छोटे बच्चों की मां के इस सवाल के बारे में मैंने सोचा तक न था. उसका एक बच्चा उसकी साड़ी का पल्लू पकड़े हुआ था और दूसरा गोद में था. उसने पति को गांव में उस जगह पर लाने के लिए राजी किया था जहां हम लिखत-पढ़त कर रहे थे. महीनों बाद मैंने पाया कि यह महिला कोई अपवाद न थी. जवान हों या बूढ़ी, शादीशुदा हों या अविवाहित-कम से कम मिडिल स्कूल तक पढ़ीं- महिलाएं नियमित वेतन वाली नौकरियां या खुद का छोटा धंधा शुरू करके, यहां तक कि गिग वर्क के जरिए पैसे कमाने के अवसर पाने को बेताब हैं.
घर पर काम के भारी बोझ, नल जल, पाइप वाली गैस या नियमित बिजली सप्लाइ जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल की खराब सुविधाओं और गांवों के बीच अच्छे परिवहन की कमी के बावजूद कम वेतन और खराब कामकाजी माहौल में भी काम करने की यह स्पष्ट इच्छा दो बातें दर्शाती है. पहली, चुनौतियों का सामना करने की भारतीय महिलाओं की क्षमता असाधारण है और इसे श्रम बल भागीदारी दरों के पारंपरिक आंकड़ों के जरिए नहीं मापा जा सकता. दूसरी, यह मुख्यधारा के अकादमिकों की इस समझ के उलट है कि भारतीय महिलाएं सड़क पर और कार्यस्थल पर यौन हिंसा के डर से, परिवार/समुदाय की अस्वीकृति की वजह से वेतन वाले काम शुरू करने को तैयार नहीं या काम छोड़ रही हैं.
この記事は India Today Hindi の January 15, 2025 版に掲載されています。
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ऐशो-आराम की उभरती दुनिया
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रोबॉट के रास्ते आ रही क्रांति
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रूस की पाती
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