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उत्तर-दक्षिण में खिंची तलवार
India Today Hindi|March 19, 2025
अपनी राजनैतिक आवाज, संघीय स्वायत्तता और आर्थिक योगदान सुरक्षित रखने की खातिर दक्षिणी राज्य परिसीमन की कवायद के खिलाफ उतरे. उनका सामना उत्तर के राज्यों से जो खुद का ही प्रतिनिधित्व कम होने का पहले से रोना रो रहे
- अमरनाथ के. मेनन और कौशिक डेका
उत्तर-दक्षिण में खिंची तलवार

क्षिण भारत फिक्र की एक मोटी लाल लकीर खींच रहा है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की तरफ से 5 मार्च 2025 को बुलाई गई बैठक में राज्य के सभी नेताओं ने आगे होने वाली परिसीमन की कवायद को अपनी "राजनैतिक प्रासंगिकता" पर सोचा-समझा हमला करार दिया और इसके खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया. स्टालिन ने आगाह किया कि अगर आबादी के कच्चे आंकड़ों के आधार पर परिसीमन किया गया, तो इस मंसूबे के तहत अपनी जन्म दरों पर कामयाब नियंत्रण रखने वाले दक्षिणी राज्यों को सजा दी जाएगी, जबकि ऐसा नहीं करने वाले उत्तर को इनाम मिलेगा. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैया, तेलंगाना के ए. रेवंत रेड्डी और केरल के पिनाराई विजयन ने भी ऐसी ही आशंकाएं जाहिर कीं और आगाह किया कि संसद में दक्षिण की कमजोर मौजूदगी का मतलब यह होगा कि उन्हें केंद्रीय धन के आवंटन में कमी आएगी और देश के दो क्षेत्रों के बीच आर्थिक गैर-बराबरी और गहरी हो जाएगी.

मह आबादी के आधार पर पुनर्गठन का मतलब यह होगा कि खालिस अपनी तादाद के बूते उत्तरी राज्य राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी पकड़ और मजबूत कर लेंगे. दक्षिणी राज्यों का मानना है कि इससे देश का संघीय संतुलन बदल जाएगा और उनके लिए अहम नीतिगत मामलों में अपने हितों की रक्षा करना और मुश्किल हो जाएगा. यहां तक कि भाजपा के सहयोगी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी बेचैनी जाहिर की और इशारा किया कि अपना असर बनाए रखने के लिए राज्य जनसंख्या नीति पर नए सिरे से सोचने पर मजबूर हो सकते हैं.

तमिलनाडु में दलगत बाड़ेबंदी से ऊपर उठकर परिसीमन का विरोध किया जा रहा है. भाजपा को छोड़कर करीब सभी राजनैतिक पार्टियां इसे भेदभावपूर्ण कदम मानती हैं जो संविधान की संघीय भावना को खोखला कर देगा. मुख्यमंत्री स्टालिन परिसीमन को तमिलनाडु की स्वायत्तता का अतिक्रमण करने के इरादे से केंद्र के ज्यादा बड़े पैटर्न के हिस्से के तौर पर देखते हैं. उन्होंने केंद्र सरकार पर बार-बार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (एनईईटी या नीट) सरीखी नीतियों के जरिए राज्य की वित्तीय और शैक्षिक स्वायत्तता को कमजोर करने का आरोप लगाया. उनका कहना है कि संसदीय सीटों में कमी से यह रुझान और तेज होगा, जिससे लोकसभा में अपने हितों की वकालत करने के लिए तमिलनाडु के पास और भी कम नुमाइंदे बचेंगे.

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