लेकिन इसमें पारदर्शिता नहीं बरती गई क्योंकि यहां के अधिकांश रैयतों का कहना है कि उन्हें अधिग्रहण से संबंधित कोई नोटिस ही नहीं मिला है। ईसीएल तो स्वयं अब आऊट सोर्सिंग पर निर्भर है इसलिए रैयतों से सीधे बातचीत भी नहीं कर रहा है और आउटसोर्सिंग कंपनी मां अंबे जिला प्रशासन का इस्तेमाल कर रैयतों पर हमले कर रही है, उनपर झूठे मुकदमे दर कर उन्हें डराने के काम में लगी हुई है। झारखंड में कोयला खदान ढ़ेर सारे हैं, लेकिन यह आदिवासियों के लिए अभिशाप है। गोड्डा जिला के अंदर कोयला निकालने के लिए राजमहल परियोजना के अंतर्गत ईसीएल कंपनी लगातार कई गाँवो को विस्थापित कर रही है, गोड्डा जिला के लालमटिया प्रखंड का कई गाँव देखते ही देखते नक्शे से गायब हो गया ओर विकास की भेंट चढ़ गया। पहले कुछ गाँवो को लालच देकर और बाद में कई गाँवो को जबरदस्ती और दमन करके विस्थापित किया गया और खदान बनाकर कोयला निकाला गया। बसडीहा, लोहन्डिया, डकैटा, सहित कई गाँव आज अपने अस्तित्व में है ही नहीं या फिर थोड़ा बहुत बचा है जो कुछ दिनों में खत्म हो जायेगी। इसी क्रम में तालझारी गाँव भी है, जहाँ आदिवासी समुदाय के संथाल जनजाति के लोग बहुसंख्यक में है वहीं दो चार गैर आदिवासी समाज के घर भी हैं। बेहद शांत और पहाड़ी के किनारे बसा गाँव है सपाट इलाको में बहुफसली खेती होती है। लेकिन आज यह गाँव अपने अस्तित्व के लिए सरकारी तंत्र से लड़ रहा है, ऐसा नहीं है कि यह गाँव गैर अधिकारिक तरीके से बसा है, यह गांव झारखंड के खतियानी लोगों का है सभी के पास जमीनों के दस्तावेज हैं सभी लोगों कानून के दायरे में यहाँ पर वैध हैं। लेकिन फिर भी इसे जबरदस्ती खनन के नाम पर विस्थापित करने के लिए गोड्डा की जिला प्रशासन हर हथकंडा अख्तियार कर रही है।
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