पिछले पांच सालों में एसबीआई को छोड़ शेष 11 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने केवल और केवल मिनिमम बैलेंस के नाम पर 8 हजार 500 रु. करोड़ रु. की कमाई की है। इसका साफ साफ अर्थ है कि गरीब आदमी के खातों से साढ़े आठ हजार करोड़ रुपए तो इन बैंकों में न्यूनतम बैलेंस ना रख पाने के कारण गवाने पड़े है। यह तो तब है जब देश के सबसे बड़े बैंक ने 2019-20 में न्यूनतम बैलेंस की पैनेल्टी के रुप में 640 करोड़ जुर्माना के रुप में वसूलने के बाद न्यूनतम बैलेंस पर पेनेल्टी लगाने का आदेश वापिस ले लिया। 12 में से 11 बैंकों की साढ़े 8 हजार करोड़ की पांच साल में पेनेल्टी वसूली रही है तो कल्पना की जा सकती है कि निजी क्षेत्र के बैंकों ने इस तरह के जुर्माने से कितना खजाना भरा होगा। साढ़े 8 हजार करोड़ रु. की जुर्माना राशि का आंकड़ा किसी भी तरह से कपोल कल्पित या अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं हैं क्योंकि यह जानकारी अधिकृत रुप से संसद में केन्द्रीय वित राज्य मंत्री पंकज चौधरी द्वारा दी गई है। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में बैंकों में मार्च, 23 में 294 करोड़ से अधिक खाते हैं। अब यह स्पष्टीकरण देने का कोई मतलब नहीं कि यह पैसा गरीब खातेदारों के अकाउंट्स से ही गया हैं क्योंकि पैसे वाले खाताधारकों के खातों में तो न्यूनतम बैलेंस रहता ही है। देश में बैंकिंग नेटवर्क का इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, 22 निजी क्षेत्र के बैंक, 44 विदेशी बैंक, 56 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, 1485 अरबन कोआपरेटिव बैंक और हजारों की संख्या में ग्रामीण सहकारी
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