भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण पर भारी भरकम एक्ट बनाए हैं और इन एक्ट को 1974 में सबसे पहले लाया गया था उसके बाद 2018 तक तमाम कानून लागू हुए जिनमें से सबसे बड़ा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम है जिसके साये में वो तमाम कानून हैं जो प्रदूषण पर नियंत्रण और पर्यावरण के संरक्षण पर काम करते हैं। आरटीआई के तहत हासिल दस्तावेजों के आधार पर एक अध्ययन में यह पाया गया कि पर्यावरण की हिफाजत के लिए देश की शीर्ष अदालतों और अभिकरण के निर्देशों पर उतना अमल नहीं हो रहा है जितना होना चाहिए। मप्र स्तर पर हासिल जानकारी के आधार पर तैयार रिपोर्ट कुछ अनोखे तथ्य प्रकट करती है?
देश में विभिन्न कानून बनाने का उद्देश्य उन कानूनों से संबंधित क्षेत्र का बेहतर तरीकों से दे (संचालन करना और उल्लंघनकर्ताओं को प्रावधान के तहत दंडित करना है। बात पर्यावरण से संबंधित करें तो पर्यावरण के संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए हमारे देश में जल अधिनियम और वायु अधिनियम पारित किए गए थे जो कि सत्तर और अस्सी के दशक की महती जरूरत भी थी। उसके बाद धीरे-धीरे बदलते पर्यावरण, फैलते प्रदूषण और लोगों की सेहत पर असर डालने वाले घातक कारकों को काबू में करने के लिए राष्ट्रीय और अन्तर राष्ट्रीय स्तर पर की गई तमाम कोशिशों के बाद नए कानूनों का गठन किया गया। खास तौर पर देखा जाए तो भारत में प्रमुख पर्यावरण कानूनों में जो कानून शामिल हैं वे हैं, जल अधिनियम 1974, वायु अधिनियम 1981, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, खतरनाक अपशिष्ट संचालन अधिनियम 2016, वन अधिनियम 1980, जैव चिकित्सा अपशिष्ट अधिनियम 2016, इत्यादि। ये सारे अधिनियम हमारे पर्यावरण के संरक्षण और प्रदूषण को नियंत्रण में रखने के लिए बनाए गए हैं।
हमारा संवैधानिक अधिकार
This story is from the September 2024 edition of Open Eye News.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the September 2024 edition of Open Eye News.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
बुलडोजर कार्रवाई में अहम है 'सुप्रीम' आदेश
भारतीय राजनीति का स्वरूप अब बदल चुका है।
औद्योगिक क्षेत्र से श्रमिकों का कृषि की ओर बढ़ता रुझान
शहरों में जाकर काम करने वाले भारत के लोग बड़ी संख्या में अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं।
रोजगार और निवेश से संपन्न, समृद्ध, स्वावलंबी बनता मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश को सम्पन्न, समृद्ध, स्वावलंबी और सक्षम राज्य बनाने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जोर शोर से जुटे हुए हैं।
मुफ्त की रेवड़ियों ने सरकारों की कर दी वापसी
देश के मतदाता लगता है, मुफ्त की रेवड़ियों के लालच में मतदान करने लगे हैं। इसी का परिणाम है कि महाराष्ट्र और झारखंड में सत्ताएं बरकरार रही हैं।
आखिर अडानी के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़े हुए हैं अमेरिकी ?
बता दें कि यूनाइटेड स्टेट्स अटॉर्नी ऑफिस ने अदाणी पर भारत में सोलर एनर्जी से जुड़ा कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को 265 मिलियन डॉलर (2200 करोड़ रुपए से ज्यादा) की रिश्वत देने का आरोप लगाया है,जो एक गम्भीर बात है।
झारखंड में अमित शाह के ऐलान के मायने
1981 के जनगणना में आदिवासियों की आबादी में मामूली बढ़त देखी गई।
चुनाव आयोग को सजग सतर्क रहने की जरूरत
चुनाव प्रचार के दौरान भाषाई स्तर, नेताओं की भंगिमा और राजनीतिक जुमलों के प्रयोग ने मतदाताओं में चिन्ता पैदा की है।
फुड सेफ्टी डिसप्ले बोर्ड संबंधी दिशा निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन
खाद्य अधिकारी मानते हैं कि ये एक्ट नहीं है
20 लिटर जार में बिकने वाला पानी अमानक
पूरे देश में हट रोज 20 लिटर के जार में पेयजल खुले तौर पर बेचा जा रहा है जिसे आर.ओ. वॉटर के रूप में बेचा जाता है।
डबल इंजन की सरकार में तेज रफ्तार से चल रही है छत्तीसगढ़ में विकास की रेल-मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने कहा है कि डबल इंजन की सरकार में छत्तीसगढ़ में अब तेज रफ्तार से विकास की रेल चल रही है।