खिरकार, तकरीबन ढाई महीने बाद एक युवती और एक अधेड़ महिला को निर्वस्त्र कर दिनदहाड़े सरेराह घुमाए जाने का लीक हुआ एक वीडियो मणिपुर के मसले पर देश को झकझोरने का सबब बना। इसके दस दिन बाद विपक्षी दलों के 21 सांसदों ने वहां का दौरा किया। महिला सांसदों से मिली पीड़ित औरतों ने बताया कि उस घटना के दौरान पुलिस खुद दानवी भीड़ का हिस्सा बनी रही थी। जनजातीय या आदिवासी औरतों पर ऐसे हमले दो समुदायों के टकराव में सिर्फ मणिपुर में नहीं हो रहे हैं।
अपने जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए आदिवासियों की लड़ाई में उनकी औरतों के साथ अत्याचार को एक औजार की तरह इस्तेमाल करने का सिलसिला देश के दूसरे हिस्सों में भी बढ़ता जा रहा है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े भी इसकी गवाही दे रहे हैं। एनसीआरबी के अनुसार, अनुसूचित जनजाति की महिलाओं पर जुल्म की घटनाओं में 2020 (8272 घटनाएं) के मुकाबले 2021 में (8802 घटनाएं) 6.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। ऐसा हर मामला थाने में दर्ज नहीं होता। इनमें अपंजीकृत मामले ज्यादा होते हैं, जो आधिकारिक आंकड़ों को कम कर देते हैं। झारखंड ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट के पूर्व निदेशक डॉ. प्रकाशचंद्र उरांव कहते हैं, “आदिम जनजातीय समूह तमाम तरह के जुल्म झेलने को बाध्य होते हैं, वहां से अत्याचार और उत्पीड़न के आंकड़ें रेंग कर भी जिला मुख्यालय तक नहीं पहुंच पाते।"
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