वित्त मंत्रालय ने चुनावी बॉन्ड की त्रैमासिक बिक्री की खिड़की खोल दी है। इसे 1 अप्रैल से 10 अप्रैल 2021 के बीच खरीदा जा सकेगा। पिछले ही हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद मंत्रालय की यह अधिसूचना आई है। शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड पर सुनवाई के दौरान हालांकि नई चिंता जाहिर की थी कि राजनीतिक दलों को मिले चंदे का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों या हिंसा वगैरह में किए जाने की आशंका है। इस संदर्भ में उसने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या इस चंदे के इस्तेमाल को नियंत्रित करने का कोई उपाय उसके पास है। मुझे उम्मीद थी कि अदालत इसी के साथ एक और अहम सवाल उठाती, एक और आशंका जहां इस चंदे के संदिग्ध इस्तेमाल की गुंजाइश मौजूद है - चुनावों के बाद जनादेश को पलटने के लिए विधायकों की खरीद में इसका प्रयोग।
सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिका पर हुई, जिसने चुनावी बॉन्ड की ताजा बिक्री पर रोक लगाने की मांग की थी। एसोसिएशन की चुनावी बॉन्ड को चुनौती देने वाली मूल याचिका अदालत के समक्ष अब भी लंबित है।
यह मुद्दा फरवरी 2017 से ही ज्वलंत बना हुआ है, जब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में दो बड़े बयान दिए थे: एक, राजनैतिक फंडिंग में पारदर्शिता के बगैर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव मुमकिन नहीं हैं; और दूसरा, सत्तर साल से चिंता जताने के बावजूद हम उस पारदर्शिता को हासिल कर पाने में नाकाम रहे हैं। इन भव्य बयानों के बाद कोई भी उम्मीद कर सकता था कि मुद्दे का हल निकलेगा, हालांकि अपने कहे से ठीक उलट घोषणा उन्होंने कर दी।
इस तरह चुनावी बॉन्ड की पैदाइश हुई और पारदर्शिता एक बार फिर से उसका शिकार हुई। उसके बाद से 20,000 रुपये से ज्यादा चुनावी चंदे की हर राशि की सूचना चुनाव आयोग को दी गई है। फर्क इतना आया है कि अब 20 करोड़ हो या 200 करोड़ रुपये, कितनी भी रकम बेनामी दान दी जा सकती है। इसके पीछे वजह यह गिनाई गई कि चंदा देने वाला गोपनीयता की चाहत रखता है।
This story is from the March 18, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the March 18, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
'वाह उस्ताद' बोलिए!
पहला ग्रैमी पुरस्कार उन्हें विश्व प्रसिद्ध संगीतकार मिकी हार्ट के साथ काम करके संगीत अलबम के लिए मिला था। उसके बाद उन्होंने कुल चार ग्रैमी जीते
सिने प्रेमियों का महाकुंभ
विविध संस्कृतियों पर आधारित फिल्मों की शैली और फिल्म निर्माण का सबसे बड़ा उत्सव
विश्व चैंपियन गुकेश
18वें साल में काले-सफेद चौखानों का बादशाह बन जाने वाला युवा
सिनेमा, समाज और राजनीति का बाइस्कोप
भारतीय और विश्व सिनेमा पर विद्यार्थी चटर्जी के किए लेखन का तीन खंडों में छपना गंभीर सिने प्रेमियों के लिए एक संग्रहणीय सौगात
रफी-किशोर का सुरीला दोस्ताना
एक की आवाज में मिठास भरी गहराई थी, तो दूसरे की आवाज में खिलंदड़ापन, पर दोनों की तुलना बेमानी
हरफनमौला गायक, नेकदिल इंसान
मोहम्मद रफी का गायन और जीवन समर्पण, प्यार और अनुशासन की एक अभूतपूर्व कहानी
तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे
रफी जैसा बनने में केवल हुनर काम नहीं आता, मेहनत, समर्पण और शख्सियत भी
'इंसानी भावनाओं को पर्दे पर उतारने में बेजोड़ थे राज साहब'
लव स्टोरी (1981), बेताब (1983), अर्जुन (1985), डकैत (1987), अंजाम (1994), और अर्जुन पंडित (1999) जैसी हिट फिल्मों के निर्देशन के लिए चर्चित राहुल रवैल दो बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित हो चुके हैं।
आधी हकीकत, आधा फसाना
राज कपूर की निजी और सार्वजनिक अभिव्यक्ति का एक होना और नेहरूवादी दौर की सिनेमाई छवियां
संभल की चीखती चुप्पियां
संभल में मस्जिद के नीचे मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका के बाद हुई सांप्रदायिकता में एक और कड़ी