पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को तीन बार चुनकर संसद में भेजने वाले ऐतिहासिक लोकसभा क्षेत्र फूलपुर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के लिए उमड़ी भीड़ का अनियंत्रित उत्साह अगर कोई संकेत है, तो कहा जा सकता है कि यह चुनाव बड़े बदलाव का संकेत है। उत्साह इतना जबरदस्त था कि दोनों नेता अपना भाषण तक नहीं दे पाए। तो क्या प्रोफेसर जवीद आलम का वह निम्न वर्ग (सबाल्टर्न)- जिसे वे ‘लोकतंत्र का तलबगार’ कहते हैं- लोकतंत्र को बचाने के लिए उठकर खड़ा हो गया है?
इस उत्साह को देखकर समाजवादी पार्टी के नेता कहने लगे हैं कि उनका पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का फार्मूला चल निकला है। कांग्रेस के लोग कहने लगे हैं कि उनके घोषणापत्र में दिए पांच न्याय लोगों को पसंद आ गए हैं।
पांचवें चरण के मतदान की 49 सीटों में उत्तर प्रदेश की 14 सीटें थीं। इनमें कुछ अवध और कुछ बुंदेलखंड की थीं। इनमें से कम से कम पांच सीटों का लाभ तो कंजूसी से किए गए आकलन में भी इंडिया गठबंधन को दिख रहा था, लेकिन फूलपुर और प्रयागराज की सभाएं और पूरब की सीटों पर सबाल्टर्न तबके के भीतर संविधान और लोकतंत्र के लिए बढ़ता संकल्प अगर कोई संकेत है, तो मान लेना चाहिए कि इस चुनाव में हिंदुत्व और कॉरपोरेट का एजेंडा पछाड़ खा रहा है। आश्चर्य है कि समाज के जिस तबके ने संविधान को ठीक से पढ़ा नहीं है आज वह अपने जीवन में उसकी सार्थकता और उससे बाबासाहब आंबेडकर के भावुक लगाव को महसूस करने लगा है। यही कारण है कि गोंडा संसदीय सीट पर- जहां राजा साहब यानी कीर्तिवर्धन सिंह का अपनी पुरानी रियाया पर बहुत दबाव था कि मोदी का कमल खिलाएं- वकील राम बहाल संविधान और आरक्षण को बचाने के लिए साइकिल दौड़ा रहे थे। बस्ती सीट पर प्रधानी का चुनाव हारने वाले दुखरन भी यही चिंता जताते हैं कि संविधान खत्म हो सकता है, हालांकि वे मायावती का मोह छोड़ नहीं पाते।
This story is from the June 10, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the June 10, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
'वाह उस्ताद' बोलिए!
पहला ग्रैमी पुरस्कार उन्हें विश्व प्रसिद्ध संगीतकार मिकी हार्ट के साथ काम करके संगीत अलबम के लिए मिला था। उसके बाद उन्होंने कुल चार ग्रैमी जीते
सिने प्रेमियों का महाकुंभ
विविध संस्कृतियों पर आधारित फिल्मों की शैली और फिल्म निर्माण का सबसे बड़ा उत्सव
विश्व चैंपियन गुकेश
18वें साल में काले-सफेद चौखानों का बादशाह बन जाने वाला युवा
सिनेमा, समाज और राजनीति का बाइस्कोप
भारतीय और विश्व सिनेमा पर विद्यार्थी चटर्जी के किए लेखन का तीन खंडों में छपना गंभीर सिने प्रेमियों के लिए एक संग्रहणीय सौगात
रफी-किशोर का सुरीला दोस्ताना
एक की आवाज में मिठास भरी गहराई थी, तो दूसरे की आवाज में खिलंदड़ापन, पर दोनों की तुलना बेमानी
हरफनमौला गायक, नेकदिल इंसान
मोहम्मद रफी का गायन और जीवन समर्पण, प्यार और अनुशासन की एक अभूतपूर्व कहानी
तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे
रफी जैसा बनने में केवल हुनर काम नहीं आता, मेहनत, समर्पण और शख्सियत भी
'इंसानी भावनाओं को पर्दे पर उतारने में बेजोड़ थे राज साहब'
लव स्टोरी (1981), बेताब (1983), अर्जुन (1985), डकैत (1987), अंजाम (1994), और अर्जुन पंडित (1999) जैसी हिट फिल्मों के निर्देशन के लिए चर्चित राहुल रवैल दो बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित हो चुके हैं।
आधी हकीकत, आधा फसाना
राज कपूर की निजी और सार्वजनिक अभिव्यक्ति का एक होना और नेहरूवादी दौर की सिनेमाई छवियां
संभल की चीखती चुप्पियां
संभल में मस्जिद के नीचे मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका के बाद हुई सांप्रदायिकता में एक और कड़ी