अच्छी खबर यह है कि अभी-अभी संपन्न हुए आम चुनावों ने ऐसे युवा नेताओं की फसल पैदा की है जो अब इस देश की निगाह में आ चुके हैं। यह नौजवान पीढ़ी बिलकुल नई ऊर्जा, इच्छाशक्ति और विचारों के प्रति खुलेपन की नुमाइंदगी करती है। ये लोग बदलाव की जरूरत को समझते हैं और उसका सम्मान भी करते हैं।
स्वाभाविक रूप से जो सबसे मुखर आवाज नई पीढ़ी में उभरी है, वह राहुल गांधी की है। 2019 की हताशा और हार के अतल से उबर कर 99 लोकसभा सीटों के सम्मानजनक आंकड़े तक कांग्रेस पार्टी को पहुंचाने वाले इस शख्स की कहानी अलग से कहे जाने योग्य है।
उतनी ही दिलचस्प कहानियां दूसरे युवा नेताओं की हैं जो आने वाले कुछ बरसों में सियासी फिजा पर छा जाने को तैयार हैं। इनमें से तीन पर करीबी निगाह रखी जानी चाहिए।
अखिलेश यादव
युवा नेताओं की ताजा फसल की सबसे अहम पैदाइश हैं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, जिनके जोर से न केवल भाजपा बहुमत से चूक गई बल्कि अयोध्या आंदोलन का केंद्र रहे सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश ने हिंदुत्व के गुब्बारे को पंचर कर डाला।
इस आम चुनाव में उतरने से पहले अखिलेश यादव के सामने एकाधिक चुनौतियां थीं। पहली तो यही, कि चुनाव के सातवें दौर तक खुद को मैदान में टिकाये रखने जितनी ताकत, धैर्य और मिजाज उनमें कायम रहेगा या नहीं। इस मैदान में उनका सामना योगी आदित्यनाथ और उनके प्रभामंडल में सिमटे समूचे प्रशासन से था। फिर उनके ऊपर अमित शाह और नरेंद्र मोदी थे, जो समाजवादी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल चुके थे। इसके बावजूद अखिलेश ने अपने समर्थकों को निराश नहीं किया और वे दौड़ में बने रहे।
राहुल गांधी के साथ उनकी संयुक्त रैलियों में उमड़ी जबरदस्त भीड़ ने उन्हें और ऊर्जा दी। आखिरकार अपनी पार्टी के खाते में 37 लोकसभा सीटें जीतकर अखिलेश ने अपने नेतृत्व पर उठने वाली तमाम आशंकाओं को शांत कर दिया है। खासकर उनके खानदान में न तो शिवपाल यादव और न ही रामगोपाल यादव के पास उनके नेतृत्व पर सवाल उठाने की कोई कुव्वत बच रही है। मुलायम सिंह यादव की ठोस विरासत अब अखिलेश यादव की काया में पूरी तरह ढल चुकी है।
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