क्रिकेट का रंग-रूप तेजी से बदला है। यह तेज और मनोरंजक होता गया है। दुनिया भर में फ्रेंचाइजी लीग का चलन फायदे और नुकसान लेकर आता है। पैसा इसका केंद्र है। टी20 प्रारूप की अपार सफलता ने इस प्रारूप को खेल के साथ खिलाड़ियों और इससे जुड़े लोगों को कमाने का नया जरिया दे दिया है। कुछ क्रिकेटर देश के बजाय फ्रेंचाइजी के लिए खेलना पसंद कर रहे हैं। सवाल उठता है, क्या जरूरी है फ्रेंचाइजी क्रिकेट या देश का प्रतिनिधित्व? क्रिकेट में इस तरह के बदलाव का पहला संकेत दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी क्विंटन डी कॉक लाए। 29 साल की उम्र में उन्होंने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया ताकि वे सफेद गेंद के प्रारूप पर ध्यान केंद्रित कर सकें। ट्रेंट बोल्ट ने दुनिया भर की फ्रेंचाइजी लीग में खेलने के लिए न्यूजीलैंड अनुबंधों से बाहर निकलने का विकल्प चुना। केन विलियमसन ने न्यूजीलैंड के केंद्रीय अनुबंध को अस्वीकार कर कप्तान पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, ये दोनों अभी भी प्रमुख आयोजनों के दौरान चयन के लिए उपलब्ध रहेंगे। कई और बड़े खिलाड़ी भी यही तरीका अपना रहे हैं। एक या दो सदी पहले, समयबद्ध टेस्ट मैच को निंदनीय माना जाता था, पूर्ण टी20 क्रिकेट की तो बात ही छोड़िए। लेकिन आईपीएल, विटैलिटी ब्लास्ट, सीपीएल टी20 और बिग बैश लीग आने तक, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में काफी रुचि थी।
2000 के दशक की शुरुआत में, खेल अलग था। पैसों की बात करें तो, क्रिकेटर कई घंटों तक लगातार खेलने के बाद भी आर्थिक मजबूती से दूर थे। 2003 में, टी20 का पहला निर्धारित प्रारूप इंग्लिश काउंटी टीमों के बीच खेला गया था, जब उनके पास पूरे 50 ओवर खेलने के लिए पर्याप्त समय नहीं था। ठीक 2 साल बाद, टी20 पहली बार ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेला गया। हालांकि, उस समय किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन धीरे-धीरे इस प्रारूप की बढ़ती लोकप्रियता के साथ, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) ने अंततः एक वैश्विक टूर्नामेंट कराने का फैसला किया और इस प्रकार 2007 टी20 विश्व कप का आयोजन हुआ। इस टूर्नामेंट में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ रोमांचक फाइनल मुकाबला जीतकर पहली बार टी20 विश्व कप ट्रॉफी अपने नाम की।
This story is from the October 14, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the October 14, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
'वाह उस्ताद' बोलिए!
पहला ग्रैमी पुरस्कार उन्हें विश्व प्रसिद्ध संगीतकार मिकी हार्ट के साथ काम करके संगीत अलबम के लिए मिला था। उसके बाद उन्होंने कुल चार ग्रैमी जीते
सिने प्रेमियों का महाकुंभ
विविध संस्कृतियों पर आधारित फिल्मों की शैली और फिल्म निर्माण का सबसे बड़ा उत्सव
विश्व चैंपियन गुकेश
18वें साल में काले-सफेद चौखानों का बादशाह बन जाने वाला युवा
सिनेमा, समाज और राजनीति का बाइस्कोप
भारतीय और विश्व सिनेमा पर विद्यार्थी चटर्जी के किए लेखन का तीन खंडों में छपना गंभीर सिने प्रेमियों के लिए एक संग्रहणीय सौगात
रफी-किशोर का सुरीला दोस्ताना
एक की आवाज में मिठास भरी गहराई थी, तो दूसरे की आवाज में खिलंदड़ापन, पर दोनों की तुलना बेमानी
हरफनमौला गायक, नेकदिल इंसान
मोहम्मद रफी का गायन और जीवन समर्पण, प्यार और अनुशासन की एक अभूतपूर्व कहानी
तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे
रफी जैसा बनने में केवल हुनर काम नहीं आता, मेहनत, समर्पण और शख्सियत भी
'इंसानी भावनाओं को पर्दे पर उतारने में बेजोड़ थे राज साहब'
लव स्टोरी (1981), बेताब (1983), अर्जुन (1985), डकैत (1987), अंजाम (1994), और अर्जुन पंडित (1999) जैसी हिट फिल्मों के निर्देशन के लिए चर्चित राहुल रवैल दो बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित हो चुके हैं।
आधी हकीकत, आधा फसाना
राज कपूर की निजी और सार्वजनिक अभिव्यक्ति का एक होना और नेहरूवादी दौर की सिनेमाई छवियां
संभल की चीखती चुप्पियां
संभल में मस्जिद के नीचे मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका के बाद हुई सांप्रदायिकता में एक और कड़ी