फलस्तीन पर अरब की सरकारें उदासीन क्यों
Outlook Hindi|November 11, 2024
फलस्तीन के मसले पर अरब देशों के शासकों और उसकी जनता का नजरिया एक-दूसरे के खिलाफ क्यों है?
सीमा गुहा
फलस्तीन पर अरब की सरकारें उदासीन क्यों

गाजा और लेबनान में चल रही जंग पर अरब जगत की प्रतिक्रिया उदासीन रही है। गाजा के लोगों के दुख-दर्द और मानवीय त्रासदी को अरब की सरकारें किनारे बैठकर देखती रही हैं और युद्धविराम की रस्मी मांग उठाकर फारिग हो गई हैं। इस मामले में कतर अपवाद रहा, जिसने अमेरिका और मिस्र के साथ मिलकर शांति समझौता करवाने में अपनी भूमिका निभाई है। इसके अलावा, कतर की सरकार से आंशिक अनुदान प्राप्त दोहा से प्रसारित होने वाले निजी टेलिविजन चैनल अल जजीरा ने गाजा और लेबनान का घटनाक्रम दुनिया के सामने लाने का एक महत्वपूर्ण काम किया है। इजरायल और वेस्ट बैंक में काम करने पर इजरायल का अल जजीरा के ऊपर लगाया प्रतिबंध इस लिहाज से आश्चर्य पैदा नहीं करता। इस इलाके के घटनाक्रम पर करीबी नजर रखने वाले जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पश्चिमी एशिया अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष आफताब कमल पाशा कहते हैं, "अरब की ज्यादातर सरकारें या तो राजशाही हैं या तानाशाही और कुछेक केवल नाम के लिए लोकतंत्र हैं। अरब के लोग इजरायल को अमेरिका और पश्चिम के समर्थन पर नाराज हैं। वे उन्हें गाजा के कत्लेआम, लेबनान में हुए हमलों और यमन में हूथी के दमन का जिम्मेदार मानते हैं। इसलिए वहां की सरकारें अपने ही लोगों के गुस्से को लेकर डरी हुई हैं, लेकिन उनकी मजबूरी यह है कि अपने खानदानी शासन को बरकरार रखने के लिए वे अमेरिका और पश्चिम के समर्थन के भरोसे हैं। कुल मिलाकर अरब की सरकारें भीतरी और बाहरी दबावों के बीच फंसी हुई हैं।"

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