दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश भारत का अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनावों में उस तरह से शायद ही जिक्र आया है जैसा चीन, ईरान, रूस या पश्चिम एशिया का आया है। भारत की खुशकिस्मती है कि जबरदस्त ढंग से बंटी हुई अमेरिकी राजनीति में अपने मजबूत संबंधों के चलते उसे वहां के दोनों दलों का बराबर समर्थन प्राप्त है। भारत के लिए आदर्श स्थिति यह होगी कि अमेरिका के अगले राष्ट्रपति का प्रशासन मौजूदा समग्र, वैश्विक और रणनीतिक अमेरिका-भारत साझीदारी को ‘इक्कीसवीं सदी को परिभाषित करने वाली एक साझीदारी’ में तब्दील करने के निर्णायक कदम उठाए। नीतिगत मोर्चे पर देखें, तो चुनाव प्रचार के दौरान भारत का संदर्भ बहुत सरसरी तौर से आया है। राष्ट्रपति पद के दोनों ही प्रत्याशी भारत-अमेरिका के रिश्तों का समर्थन करते हैं और दोनों दलों के भीतर ऐसे पुराने जानकार हैं, जो इस रिश्ते को और गहरा करने की ख्वाहिश रखते हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी हुई, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके गहरे निजी रिश्तों से दोनों देशों के संबंध परिभाषित होंगे। इसके साथ ही एक ऐसी व्यावहारिक विदेश नीति भी सामने आएगी जहां व्यापार, बाजार पहुंच और प्रवासन पर मतभेदों को रणनीतिक निहितार्थों के साथ संतुलित करने की दरकार होगी। दूसरी ओर, कमला हैरिस अगर राष्ट्रपति बनती हैं, तो जो बाइडन की तर्ज पर वे भी बहुत संभव है कि रणनीतिक मसलों को केंद्र में रखें और भारत को चीन की संतुलनकारी ताकत मानते हुए मतभेदों को और ज्यादा न बढ़ने दें।
अमेरिका और भारत के रिश्तों की बुनियाद साझा मूल्यों और परस्पर रणनीतिक हितों में है। यह बहुआयामी साझीदारी सशक्त वाणिज्यिक संबंधों, करीबी रक्षा सहयोग और साझा रणनीति सरोकारों पर आधारित है।
यूरेशिया महाद्वीप और हिंद-प्रशात में भारत की रणनीतिक भौगोलिक अवस्थिति, आर्थिक संभावना और सैन्य क्षमता उसे इस इलाके में अमेरिका का आदर्श साझीदार बनाती है। चीन के सैन्य और आर्थिक उभार के खिलाफ अमेरिकी हितों के लिए भी भारत अहम स्थान रखता है। साथ में भारत की दशकों से चली आ रही चीन की दुश्मनी इस साझा हित को और मजबूत करने का काम करती है।
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