
उम्र के नौंवे दशक में भी महाराष्ट्र के दिग्गज योद्धा शरद पवार चुनाव आते ही खिल उठते हैं, उनकी भुजाएं फड़कने लगती हैं, वाणी में वही जोश और जज्बा फूटने लगता है जैसा सत्तर और अस्सी के दशक में जवानी के दौर में हुआ करता होगा। बेशक, अभी कुछेक दिनों पहले सतारा में उनका भाषण कैंसर से चल रही जंग से चेहरे में आई विकृति के कारण धीमा था, लेकिन उनकी बोली ऊर्जा से लबरेज थी। उन्होंने ऐलान किया, “चाहे 84 साल हो या 90, यह बूढ़ा नहीं रुकेगा, जब तक महाराष्ट्र सही रास्ते पर नहीं आ जाता, चैन नहीं लूंगा।” यह सुनते ही भीड़ में भारी शोर गूंजने लगा। फिर, बारामती में अपने चचेरे पोते युगेंद्र के पर्चा भरने के दौरान पहुंचे पवार कहते हैं, ‘‘मैंने कभी घर नहीं फोड़ा। घर फोड़ने वालों की नीयत ठीक नहीं होती। उन्हें सबक सिखाना जरूरी है।’’ युगेंद्र उनके भतीजे अजित पवार के खिलाफ मैदान में हैं, जो उनका साथ छोड़कर महायुति सरकार में उप-मुख्यमंत्री हैं। शरद पवार को जो लोग ‘भटकती आत्मा’ कहकर खारिज करने की जुर्रत कर रहे थे उनके लिए संदेश साफ था। उनके कहे में एक विद्रोही भाव था कि जब तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की शिकस्त नहीं हो जाती, वे विराम नहीं लेंगे। भाजपा को सत्ता से बाहर करने की विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की योजना में कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा-शरद पवार) की भी मुख्य भूमिका है और अब सबकी निगाहें शरद पवार पर हैं।
ठीक ऐसे ही या उससे कुछ ज्यादा युवा जोश के साथ बालासाहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे लगभग हर सभा में गरजते हैं, ‘‘मुझे नकली संतान कहने वालों और गद्दारों को पता चलेगा कि कौन नकली है, कौन असली। महाराष्ट्र मराठी मानुष से चलेगा, गुजरात से नहीं।’’
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