पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और पं बेहद कद्दावर नेता रहे प्रकाश सिंह बादल से अकाल तख्त ने 'फक्र-ए-कौम' सम्मान वापस ले लिया है। यह अभूतपूर्व और अप्रत्याशित घटना है। बीते 2 दिसंबर को इसके साथ ही अकाली दल के अध्यक्ष रहे सुखबीर बादल को भी सजा सुनाई गई है। सजा के तौर पर सुखबीर बादल गले में प्रायश्चित की तख्ती डालकर अमृतसर के श्री हरमंदिर साहिब के लंगर घर में दो दिन तक जूठे बर्तन साफ करेंगे। इस घटना ने तकरीबन छह दशक से पंजाब की पंथक सियासत का पर्याय रही देश की सबसे पुरानी 1920 में स्थापित क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल के ऊपर संकट खड़ा कर दिया है। यह पंजाब और देश की राजनीति के लिए भी एक मायने में अहम है। यह घटना अकाल तख्त की राजनीतिक दिशा को नए सिरे से तय कर सकती है।
2015 में श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं और 2007 में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम द्वारा श्री गुरु गोबिंद सिंह जैसी वेशभूषा विवाद में तब की अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार ने सख्त कार्रवाई के बदले राम रहीम पर पुलिस के दर्ज मामले वापस लिए जाने के आरोप में सिखों के शीर्ष अकाल तख्त ने यह कार्रवाई की है। ताजा सुनाई गई सजा में सुखबीर बादल को प्रायश्चित के अलावा श्री केशगढ़ साहिब आनंदपुर, दमदमा साहिब, तलवंडी साबो, मुक्तसर साहिब और फतेहगढ़ साहिब के गुरुद्वारों में भी दो-दो दिन तक सेवादारों के वेश में हाथ में बरछा लिए सेवा करनी होगी।
2012 से 2017 के दौरान प्रकाश सिंह बादल की सरकार में उप-मुख्यमंत्री रहे सुखबीर को धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के मामले में 30 अगस्त को श्री अकाल तख्त ने तनखैया घोषित किया था। इस मामले में तब के मंत्रिमंडल के सदस्यों को भी अकाल तख्त ने सजा के तौर पर श्री हरमंदिर साहिब के शौचालयों की सफाई का हुकुमनामा जारी किया था। तनखैया सुखबीर बादल को सजा सुनाए जाने की प्रतिक्रिया में पूर्व कैबिनेट मंत्री दलजीत चीमा ने कहा, "सजा को स्वीकार करते हैं। प्रकाश सिंह बादल दुनिया में नहीं रहे पर उनका फक्र-एकौम सम्मान वापस लिए जाने का श्री अकाल तख्त का फैसला भी शिरोमणि अकाली दल को मंजूर है। तख्त ने जो भी सजा सुनाई है वह सही होगी।"
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बालमन के गांधी
ऐसे दौर में जब गांधी की राजनीति, अर्थनीति, समाजनीति, सर्व धर्म समभाव सबसे देश काफी दूर जा चुका है, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का रंग-ढंग बदलता जा रहा है, समूचे इतिहास की तरह स्वतंत्रता संग्राम के पाठ में नई इबारत लिखी जा रही है, गांधी के छोटे-छोटे किस्सों को बच्चों के मन में उतारने की कोशिश वाकई मार्के की है। नौंवी कक्षा की छात्रा रेवा की 'बापू की डगर' समकालीन भारत में विरली कही जा सकती है।
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वंशी माहेश्वरी भारतीय और विश्व कविता की हिंदी अनुवाद की पत्रिका तनाव लगभग पचास वर्षों से निकालते रहे हैं। सक्षम कवि ने अपने कवि रूप को पीछे रखा और बिना किसी प्रचार-प्रसार के निरंतर काव्य- सजून करते रहे हैं।
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